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________________ १३० आप्तवाणी-८ प्रश्नकर्ता : चंदूभाई। दादाश्री : अब आप क्या वास्तव में चंदूभाई हो? प्रश्नकर्ता : जी हाँ। दादाश्री : अतः यह सत्य है। लोग भी कहते हैं, कि ये वास्तव में चंदूभाई हैं। आपके फादर भी कहते हैं कि 'यह वास्तव में चंदूभाई है।' अत: यह सत्य है। लेकिन यह विनाशी सत्य है। इस जगत् का जो सत्य है, उसे ये कोर्ट एक्सेप्ट करेंगे, लेकिन भगवान इसे एक्सेप्ट नहीं करते। अब, वास्तव में आप चंदूभाई नहीं हो। चंदूभाई तो आपका नाम है न? 'आपका नाम चंदूभाई है' और 'आप खुद चंदभाई हो'-इन दो बातों में आपको विरोधाभास नहीं लगता या विरोधाभास लगता है? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : यानी इस जगत् का जो सत्य है न, वह भगवान के वहाँ पर विनाशी सत्य है। यह नाम, रूप, सबकुछ, जिसे सत्य माना जाता है न, वह सभी भगवान के वहाँ पर विनाशी है। और भगवान का जो सत् है न, सच्चिदानंद-उसमें जो सत् है न, वह सत् अविनाशी है। तो हम आपको अविनाशी सत् की ही प्राप्ति करवाते हैं, तब फिर यह सत्य तो खत्म ही हो जाएगा। सत् अर्थात् क्या कि 'परमानेन्ट'। फिर चित्त अर्थात् ज्ञान-दर्शन। और 'परमानेन्ट' ज्ञान-दर्शन रहेगा तो हमेशा आनंद ही रहेगा। अब सत्य और मिथ्या दोनों आपको समझ में आया न, या नहीं समझ में आया? यानी इसमें सत्य भी है और मिथ्या भी है, दोनों हैं। यह, जिसे आप सत्य मानते हो, वह मिथ्या साबित हुआ। लेकिन यह मिथ्या और खरा सत्, ये दोनों अलग हैं न वापस! ये चंदूभाई, यह जो सत्य था, वह अब मिथ्या हो गया।
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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