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________________ उपोद्घात खंड : १ आत्मा क्या होगा? कैसा होगा? ब्रह्मांड की सूक्ष्मतम् और गुह्यतम् वस्तु कि जो खुद का स्वरूप ही है, ‘खुद' ही ‘जो' है, ‘उसे' नहीं समझने से, 'आत्मा ऐसा होगा, वैसा होगा, प्रकाश स्वरूप होगा, वह प्रकाश कैसा होगा?' ऐसे असंख्य प्रेरक विचार विचारकों को आते ही हैं । इसका यथार्थ कल्पनातीत दर्शन तो प्रकट 'ज्ञानीपुरुष' ही करके, करवा सकते हैं । जिन्हें उनके प्रत्यक्ष योग की प्राप्ति नहीं हुई है, ऐसे लोगों को प्रस्तुत ज्ञानवाणी का ग्रंथ सच्चा मार्ग बताकर उस तरफ़ ले जाता है । I जो खुद का सेल्फ ही है, खुद ही है, उसे जानना, वही आत्मा कहलाता है। उसे पहचानना है । आत्मा के स्वरूप की, आकृति की आशंकाओं और कल्पनाओं से परे जो स्वरूप है, उसे जिसने जाना, देखा, अनुभव किया और निरंतर उसमें वास किया है, उन्होंने आत्मा को आकृति - निराकृति से परे कहा ! स्थल, काल या किसी आलंबन की जहाँ पर हस्ती नहीं है, ऐसा निरालंब, प्रकाश स्वरूप है आत्मा का।‘ज्ञानी' ऐसे आत्मा में रहते हैं। खुद जुदा, देह जुदा, पड़ोसी की तरह देह व्यवहार करते हैं ! I विश्व में नास्तिक नहीं है कोई । जिन्हें अस्तित्व का भान, 'मैं हूँ' ऐसा भान है, वे सभी आस्तिक हैं ! आत्मा अस्तित्व, वस्तुत्व और पूर्णत्व सहित होता है। अस्तित्व का भान जीवमात्र को है, वस्तुत्व का भान बिरले को ही होता है और पूर्णत्व तो प्रसाद है, वस्तुत्व को जानने का ! इस वस्तुत्व का भान तो भेदज्ञानी ही करवाते हैं I आत्मा के अस्तित्व की प्रतीति में विश्वास करवाते हुए 'ज्ञानी' कहते हैं कि जैसे सुगंध इत्र के अस्तित्व को उघाड़ देती है, वैसे ही आत्मा अरूपी होने के बावजूद, उसके सुख स्वभाव पर से पहचाना जा सकता है। अनंत १३
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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