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________________ कारुण्यमूर्ति दादाश्री को बार-बार कहते हुए सुना है, “ये जो दिखते हैं, वे ‘दादा भगवान' नहीं है, ये तो 'ए. एम. पटेल' है। 'दादा भगवान' तो अंदर प्रकट हुए हैं, वे हैं। वे चौदह लोकों के नाथ हैं! आपको जो चाहिए वह माँग लो। लेकिन आपको टेन्डर भरना भी नहीं आता !" और यह हक़ीक़त है! उन्हें सकल ब्रह्मांड के 'जिस' स्वामित्व की प्राप्ति हुई, ‘उसे' माँगने के बजाय अभागे जीव एकाध 'प्लोट' का टेन्डर भर देते हैं ! उस समय दादाश्री का हृदय यदि कोई पढ़ सकता तो ज़रूर उसे अपार करुणा से छलकता हुआ दिखता ! आत्मसंबंधी प्रवर्तमान भ्रामक मान्यताएँ परम सत् से सैंकड़ों योजन दूर धकेल देती हैं। भले ही आत्मज्ञान नहीं मिला हो, परन्तु ज्ञानीपुरुषों ने जो आत्मा देखा है, जाना है, अनुभव किया है और जिसकी प्रकट ज्ञानीपुरुष यथार्थ समझ देते हैं, वह यदि फिट हो जाए तब भी खुद उल्टी दिशा में जाने से रुक जाता है। प्रस्तुत ग्रंथ में संपूज्य श्री दादाश्री ने खुद के ज्ञान में 'जैसा है वैसा' आत्मा का स्वरूप और जगत् का स्वरूप देखा है, जाना है, अनुभव किया है, उस संबंध में उनके ही श्रीमुख से निकली हुई वाणी का यहाँ पर संकलन किया गया है, जो अध्यात्म मार्ग में पदापर्ण करनेवालों को आत्मसम्मुख होने में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी। 'ज्ञानीपुरुष' की वाणी निमित्त और संयोगाधीन सहजरूप से निकलती है, उसमें यदि कहीं भी क्षति - त्रुटि लगे, तो वह मात्र संकलन की ही खामी है, 'ज्ञानीपुरुष' की वाणी की कभी भी नहीं । उसके लिए क्षमा प्रार्थना ! I १२ • डॉ. नीरूबहन अमीन -
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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