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________________ आप्तवाणी-८ ९५ प्रश्नकर्ता : तो पूरे शरीर में जो है, वह 'मिकेनिकल' चेतन है? दादाश्री : हाँ, ‘मिकेनिकल' चेतन। प्रश्नकर्ता : तो फिर असल चेतन कहाँ है? दादाश्री : असल चेतन ही पूरे शरीर में है न! और 'मिकेनिकल चेतन', वह तो ऊपर की परत है खाली। वस्तुस्थिति में लोगों ने जिसे आत्मा माना है, वह 'मिकेनिकल' आत्मा है। हम ‘मिकेनिकल' आत्मा नहीं देते हैं। मैं तो आपको अचल आत्मा देता हूँ। क्रमिकमार्ग में 'मिकेनिकल आत्मा' को ही आत्मा माना हुआ है, 'मिकेनिकल चेतन' को ही आत्मा माना जाता है। जब अहंकार शुद्ध हो जाता है, यानी कि जिस अहंकार में क्रोध-मान-माया-लोभ नहीं समाते, अहंकार जब ऐसा शुद्ध हो जाता है, संपूर्ण शुद्ध हो जाता है, तब 'शुद्धात्मा' और 'शुद्ध अहंकार' एकाकार हो जाते हैं। यानी कि क्रमिकमार्ग में ऐसा है, लेकिन यह तो 'अक्रम विज्ञान' है। इसलिए यहाँ तो 'ज्ञानीपुरुष' आपके हाथ में शुद्धात्मा ही दे देते हैं, अचल आत्मा ही, नाम मात्र को भी ‘मिकेनिकल' नहीं है, ऐसा निर्लेप आत्मा दे देते हैं। प्रश्नकर्ता : अपने अंदर जो सभान अवस्था रही हुई है, जो अच्छाबुरा दिखाती है, वह चेतन कहलाती है? दादाश्री : नहीं। वह तो सारा निश्चेतन चेतन है, वह चेतन है ही नहीं। इसीलिए मैं कह रहा हूँ न कि चेतन को जानना तो अत्यंत मुश्किलवाला खेल है। यह जो जाना है न, वह तो 'निश्चेतन चेतन' है। 'निश्चेतन चेतन' को अंग्रेज़ी में कहना हो तो 'मिकेनिकल चेतन' कह सकते हैं। जिसमें क्रोध-मान-माया-लोभ, राग-द्वेष, मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार होते हैं, वह पूरा ही 'मिकेनिकल चेतन' है। यदि ये क्रोध-मान-माया-लोभ, बोलना-करना सबकुछ आत्मा कर रहा है, तो वह सब करने की उसकी आदत जाएगी नहीं। जिसे लोग मानते
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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