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________________ आप्तवाणी-८ हैं, वह ‘मिकेनिकल आत्मा' है। ‘मिकेनिकल आत्मा' तो बोलता-करता, सबकुछ करता है, वह भ्रांत आत्मा है। असल आत्मा, वही परमात्मा है! उसकी पहचान हुई, तो अपना काम हो जाएगा, वर्ना तब तक काम नहीं होगा। अब अगर 'मिकेनिकल आत्मा' को खुद का आत्मा मान लेगा तो कब ठिकाना पड़ेगा? इसलिए ही मैं कहता हूँ न कि आत्मा क्या है, वह जगत् ने जाना ही नहीं। और जो आत्मा नहीं है, वहीं पर आरोपण किया है कि यह जो सोचता है वह आत्मा है, यह हिलता है, चलता है, बोलता है, करता है, कूदता है, हँसता है, गाता है, खाता है, पीता है, व्यापार करता है, लड़ता है, सोता है, वह आत्मा है। सामायिक करता है, जप करता है, तप करता है, धर्मध्यान करता है, देवदर्शन करता है, वह आत्मा है। ऐसा ये लोग कहते हैं, तो मेरा क्या कहना है कि वहाँ पर आत्मा बिल्कुल भी है ही नहीं। अब जहाँ पर लेखे की रक़म में ही इतनी सारी बड़ी-बड़ी भूलें होती हैं, उसकी बेलेन्स शीट बन पाएगी क्या? । अतः यह जो व्यापार करता है, बेटी की शादी करवाता है, बेटे की शादी करवाता है, सबकुछ ‘मिकेनिकल आत्मा' ही करता है और 'अचल आत्मा' इन सबको देखता रहता है। दोनों का धर्म अलग है। यह 'मिकेनिकल आत्मा' जीवित दिखता ज़रूर है, मन में ऐसा लगता है कि यही चेतन है, लेकिन वास्तव में यह चेतन नहीं है। और वीतरागों की दृष्टि से आत्मा तो... यह जो दिखती है न, वह सारी 'मशीनरी' है, वह आत्मा नहीं है। जिसे ये सभी लोग आत्मा कहते हैं उसे हम आत्मा नहीं कहते, और वीतराग भी उसे आत्मा नहीं कहते। वीतराग आत्मा को ही 'आत्मा' कहते थे, और ये सब लोग अनात्मा को आत्मा कहते हैं। अब इन सभी लोगों से हम पूछने जाएँ कि 'साहब, आपको आत्मज्ञान करना बाकी है?' तब कहेंगे, 'आत्मज्ञान तो जानना ही पड़ेगा न!' तब हम कहें, 'आप आत्मा कहते हो न, वह आत्मा नहीं है?' तब वे कहते हैं, 'यह भी आत्मा है, लेकिन
SR No.030019
Book TitleAptavani Shreni 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2012
Total Pages368
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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