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________________ ३२ आप्तवाणी 6 ू - तो फिर सुखी कौन है? ये तो विधवा भी रोए और सुहागन भी रोए और सात पतियोंवाली भी रोए । यह विधवा रोए, तो हम समझ सकते हैं कि उस स्त्री का पति मर गया है, लेकिन यह सुहागन, 'तू किसलिए रो रही है?' तब वह कहेगी, 'मेरा पति नालायक है' और सात पतियोंवाली तो चेहरा ही नहीं दिखाती ! ऐसी ये लक्ष्मी की बातें हैं। तो फिर क्यों इस लक्ष्मी के पीछे पड़े हो? ऐसे कहाँ फँसे आप ? प्रश्नकर्ता : यह पुण्य की लक्ष्मी अपने पास आनेवाली है या नहीं, उसके लिए कुछ तो सहज पुरुषार्थ होना चाहिए न? दादाश्री : पुण्य की लक्ष्मी के लिए कैसा पुरुषार्थ होता है ? ऐसे सरल और सहज पुरुषार्थ होता है। यह तो जो सरल और सहज है, उसे हम नासमझी से कठिन बना देते हैं। प्रश्नकर्ता : यदि हमें ऐसा लगे कि सहज और सरल नहीं है और कठिन है तो फिर उसे छोड़ दें? हमें ऐसा लगे कि अपना पुण्य इतना अधिक नहीं है कि सरल रास्ते से लक्ष्मी आए, तो फिर वहाँ क्या हमें सहज हो जाना चाहिए? दादाश्री : नहीं, नहीं। धीरज रखो तो सब अपने आप सरल ही निकलता है! लेकिन यह तो धीरज नहीं रहता और भागदौड़ करके रख देता है और सारा बिगाड़ देता है। प्रश्नकर्ता : धीरज नहीं रहता न, 'ऐसा करूँ, वैसा करूँ' ऐसा हो जाता है ! दादाश्री : हाँ, ऐसा कर डालूँ, वैसा कर डालूँ, उससे सारा उलझा देता है। ट्रेन पकड़नी हो, वहाँ पर भी उसे धीरज नहीं रहता, वहाँ क्या चैन से चाय पीता है? ना, उसे तो ‘गाड़ी अभी आएगी, गाड़ी अभी आएगी' उसी में होता है। उसे कहें कि, 'भाई, ज़रा यहाँ आओ, बातचीत करनी है' लेकिन फिर भी वह नहीं सुनता। उसी तरह यह अधीरता से 'ऐसा कर डालूँ, वैसा कर डालूँ'
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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