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________________ लक्ष्मी की चिंतना (२) ३३ करता है। फिर उसके कारण क्लेश और थकान का अनुभव करता है। प्रश्नकर्ता : ऐसा है, व्यापार में अपने सिर पर स्वाभाविक रूप से कुछ तलवारें लटकती हैं कि इन्कमटैक्स भरना है, सेल्सटैक्स भरना है, तनख्वाह बढ़ानी है। तो उसके दबाव के कारण वह मिथ्या प्रयत्न करता है कि ऐसा कर लूँ और वैसा कर लूँ। यदि उसे पेमेन्ट करने हों, तो उसका रास्ता तो ढूँढेगा न! दादाश्री : फिर भी कुछ होगा नहीं, बेकार कोशिश करनेवाला वही करता रहता है। प्रश्नकर्ता : तो फिर जैसा आपने कहा वैसे धीरज रखें, तो क्या अपने आप ही व्यवस्था हो सकेगी? दादाश्री : धीरज से ही सब होगा। शांति से, धीरज से सब आएगा, वे घर बैठे बुलाने आएँगे। और फिर ऐसा नहीं है कि हमें बाज़ार में ढूँढना पड़े। वर्ना मेहनत करके मर जाए, बुद्धि का उपयोग करके मर जाए फिर भी आज चार आने भी नहीं मिलेंगे। और यह तू अकेला थोड़े ही इसे पकड़ बैठा है? पूरी दुनिया लक्ष्मी के पीछे पड़ी है! राजलक्ष्मी नहीं, आत्मलक्ष्मी ही हो यह सब डिस्चार्ज है, हो चुका है, उसे अब तू क्या करेगा? यह जो तुझे ऑर्डर मिलता है वह भी सारा पुण्य है और यदि ऑर्डर नहीं मिलें, वह तो, जब पाप का उदय हो तभी ऑर्डर नहीं मिलते। अब इसमें वापस चालबाज़ी करता है, जो मिलनेवाला ही है उसमें चालबाज़ी करता है, ट्रिक आज़माता है। ट्रिक आज़माता है या नहीं आज़माता? भगवान को क्या ट्रिक आती थीं? भगवान ने तो क्या कहा कि, 'यह राजलक्ष्मी मुझे स्वप्न में भी न हो।' क्योंकि राज जैसी संपत्ति और ये जो दूसरी सारी संपत्ति है, उसके
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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