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________________ लक्ष्मी की चिंतना (२) की तो बेटियाँ भी नहीं हैं।' फिर भी लेकर वहाँ पर जमा करती रहती हैं। और कुछ नहीं करतीं। अन्न के दाने, शक्कर के दाने, सारे जमा करती रहती हैं। और जब भूख लगे, तब वहाँ जाकर थोड़ा खाकर आ जाती हैं और फिर बाहर निकलकर पूरा दिन यही व्यापार। वह जब बहुत जमा हो जाए न, तब चूहा छेद करके सब खा जाता है। ऐसा है यह जगत्। इसलिए अगर संचय करोगे, तो कोई खानेवाला मिल जाएगा। उसका फ्रेश-फ्रेश उपयोग करो। जैसे सब्जीभाजी का संग्रह करके रखो तो क्या होगा? उसी तरह लक्ष्मी जी का फ्रेश उपयोग करो। और लक्ष्मी जी का दुरुपयोग करना बहुत बड़ा गुनाह है। ऐसा तो क्यों मान बैठे हो? प्रश्नकर्ता : लक्ष्मी नहीं होगी तो साधन नहीं होंगे और साधन के लिए लक्ष्मी की ज़रूरत है, अतः लक्ष्मी के साधन के बिना हम जो ज्ञान लेना चाहते हैं, तो वह कब मिलेगा? अतः यह लक्ष्मी ज्ञान की शाला में जाने का पहला साधन है, ऐसा नहीं लगता? दादाश्री : नहीं, लक्ष्मी बिल्कुल भी साधन नहीं है। ज्ञान के लिए तो नहीं, लेकिन वह किसी भी प्रकार से बिल्कुल भी साधन नहीं है। इस दुनिया में कोई गैरज़रूरी चीज़ हो तो वह लक्ष्मी है। जो ज़रूरत महसूस होती है, वह तो भ्रांति और नासमझी से मान बैठे हैं। ज़रूरत किसकी है? सबसे पहले हवा की ज़रूरत है। यदि हवा नहीं होगी तो तू कहेगा कि नहीं, हवा की ज़रूरत है, क्योंकि हवा के बिना मर जाते हैं। लक्ष्मी के बगैर मरनेवाले नहीं देखे गए। यानी यह लक्ष्मी ज़रूरी साधन है, ऐसा जो कहते हैं, वह तो सारी मेडनेस है। क्योंकि दो मिलवाले को भी लक्ष्मी चाहिए, एक मिलवाले को भी लक्ष्मी चाहिए, मिल के सेक्रेटरी को भी लक्ष्मी चाहिए, मिल के मज़दूर को भी लक्ष्मी चाहिए।
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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