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________________ आप्तवाणी-७ एक सेठ ने मुझे कहा, 'मेरे इन बेटों से कुछ कहिए न, मेहनत नहीं करनी है, आराम से भोगते हैं।' मैंने कहा, 'कुछ कहने जैसा है ही नहीं। वे अपने खुद के हिस्से का पुण्य भोग रहे हैं, उसमें हम क्यों दख़ल करें?' तब उसने मुझसे कहा कि, 'उन्हें समझदार नहीं बनाना?' मैंने कहा कि, 'दुनिया में जो भोगता है, वह समझदार कहलाता है, जो बाहर डाल दे वह पागल कहलाता है और जो मेहनत करता रहे, वह तो मज़दूर कहलाता है।' लेकिन जो मेहनत करता है, उसे अहंकार का रस मिलता है न! लंबा कोट पहनकर जाता है इसलिए लोग 'सेठ आए, सेठ आए' करते हैं, बस इतना ही। और भोगनेवाले को ऐसी कुछ सेठ-वेठ की नहीं पड़ी होती। हम तो जितना अपना भोगें उतना सच्चा है। __ प्रिय चीज़ को खुला छोड़ देने से समाधि समाधि कब आएगी? संसार में जिस पर अतिशय प्रीति है, उसे खुला छोड़ दिया जाए तब। संसार में किस पर अतिशय प्रीति है? लक्ष्मी जी पर। तो उसे बहा दो। तब कहते हैं कि बहा देते हैं तब और अधिक आने लगी। तब मैंने कहा कि, 'अधिक आए तो अधिक बहा देना।' प्रिय चीज़ को छोड़ो तो समाधि हो जाती है। संचित किया हुआ टिका है किसी का भी? लक्ष्मी जी तो अपने आप ही आने के लिए बद्ध हैं। और हमारे संचय करने से संचित होंगी नहीं और आज संचय करके रखें तो पच्चीस साल बाद बेटी की शादी करते समय, उस दिन तक रहेगी, उस बात में माल नहीं है और कोई ऐसा माने तो उस बात में दम नहीं है। वह तो उस दिन जो आएगी वही सही है, फ्रेश होना चाहिए। ये जो चींटियाँ होती हैं, वे सुबह चार बजे से उठती हैं। हम चाय पी रहे हों और शक्कर का एक कण गिर गया हो तो लेकर चली जाती है। 'अरे, तुम चींटियों
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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