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________________ जेब कटी? वहाँ समाधान! (१७) २५७ इन लोगों के पास जो रुपये हैं, उनमें से वे रुपये उनके नहीं हैं, पराये ही हैं। अब उनके वे रुपये कौन ले जाएगा? भगवान कहीं खुद नहीं आएँगे, भगवान खुद तो लेते नहीं हैं। इसलिए आपको ही यह सारा कारोबार अंदर-अंदर सौंप दिया है। तो औरों के रुपये जेब काटनेवाले काट लेते हैं, अब जेब कौन काटेगा लेकिन? जिसने मन में नक्की किया हो कि, 'बस, मुझे तो यही धंधा करना है।' तो फिर 'किसकी जेब काढूँ?' वह ऐसा ढूँढता है। तब कुदरत फिर उसे उसमें हेल्प करती है! क्योंकि वह उसका धंधा है। हर एक व्यक्ति स्वतंत्र है और कुदरत उसकी हेल्पर है। आपको जो धंधा करना हो, जो अनुकूल आए वह करो, कुदरत उसमें हेल्प करती है। वह इतनी अधिक हेल्पर होती है कि जेब काटनेवाले के सामने पुलिसवाला खड़ा हुआ होता है, वह जेब काटने की तैयारी करे, तब पुलिसवाले को एकदम दूसरी तरफ जाना पड़ जाता है। यानी कुदरत उसे हटा देती है, कुदरत जेब काटनेवाले के लिए जगह बना देती है। संयोग बैठा देती है। 'किसकी जेब काटनी' उससे भी मिलवा देती है। यानी काटनेवाले को तो 'कौन सी जेब काटनी है' उसकी सभी तैयारी कर रखी होती है! और जेब काटने के बाद कौन से दरवाज़े से निकलना है, दरवाज़े से बाहर आगे कौन-से फाटक में से होकर निकलना है, फाटक से निकलकर कहाँ जाकर खड़ा रहना है, इस प्रकार के सोलह-सोलह अवधान उसे एट ए टाइम रहते हैं! जबकि लोग उसका तिरस्कार करते हैं। अरे, वह कितना अक्लमंद आदमी है! ऐसा सब तो किसी बड़े कलेक्टर को भी नहीं आता! तब एक व्यक्ति ने मुझ से कहा कि, 'लेकिन भगवान को इन चोरों को, लुच्चों को, लबाड़ लोगों को जन्म ही नहीं देना चाहिए न?' मैंने कहा कि, 'तू चोरों को, लुच्चों को, लबाड़ को
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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