SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 299
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-७ समझता है? वे लोग नहीं होंगे न, तो यह जगत् मर जाएगा ! वे लोग हैं तो ये सब जीवित हैं ।' यह किसके जैसा है? उसकी सिमिलि दूँ आपको? कि इस मुंबई शहर में हम तानसा से पानी ले आएँ और घर-घर नल लगवा दें और पानी आ जाए। अब गटर नहीं होंगे तो क्या होगा? प्रश्नकर्ता: महामारी फैल जाएगी। दादाश्री : तो ये चोर, लुच्चे वगैरह तो गटर हैं। भगवान तो क्या कहते हैं कि, 'तू गटर का ढक्कन मत खोलना । तुझे अनुभव करना हो तो एक बार खोल दे और एक बार अनुभव करने के बाद फिर नक्की कर कि अब, मुझे यह गटर का ढक्कन नहीं खोलना है।' मैंने कहा, 'चोर लोग तो सब विटामिन है इस जगत् के ! उनके बिना तो जगत् चलेगा ही नहीं ! ' २५८ यानी यदि वे लोग नहीं होंगे तो क्या होगा? जितना ज़रूरी है उतना ही जगत् में है। जिनकी ज़रूरत है, उतने ही लोग हैं इस जगत् में! आपका गलत माल ले जाने के लिए इस जगत् में इन चोरों का जीवन है। भगवान कहीं खुद मारने नहीं आते वे तो ऐसे लोग होते ही हैं, वे आपको ऐसे मोटर में से उतारकर, मार-ठोककर हीरे की लोंग, घड़ी वगैरह सब ले लेते हैं न ! अतः सभी की इस जगत् में ज़रूरत है। I जेब कटी, समाधान किस प्रकार ? प्रश्नकर्ता: दादा, मेरी जेब में से रुपये गए, उसका बहुत दुःख होता रहता है। दादाश्री : दु:खी होने से रुपये वापस आ जाएँगे? प्रश्नकर्ता : नहीं आएँगे। दादाश्री : वे तो गए, लेकिन बाद में क्या ऊपर से दूसरा नुकसान उठाना है? और अब उसका उपाय क्या है? ऐसे दुःखी
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy