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________________ बॉस-नौकर का व्यवहार (१६) २५१ ब्रिटिश गवर्नमेन्ट ने भी ज़रा नियम रखे हुए थे कि फाँसी पर चढ़ाना हो न, तीन बजकर पैंतालीस मिनट पर इस व्यक्ति को फाँसी पर चढ़ाना है, उसमें एक सेकन्ड भी आगे-पीछे नहीं होता था। और यदि एक मिनट भी आगे-पीछे हो जाए तो फिर फाँसी रोकनी पड़ती थी। वह समय यानी समय। फाँसी किसी से भी रोकी नहीं जा सकती। फिर भी उन दिनों नियम ऐसा था कि जे.पी. वहाँ से होकर गुज़र रहे हों और उनकी नज़र पड़ जाए तो उस मुजरिम को छोड़ देना पड़ता था और ऐसे बहुत सारे छूट गए थे। कुछ लोग जान-बूझकर जे.पी. को वहाँ पर बुलवाते थे। इस तरह किसी को डिसमिस करना हो तो झूठ बोलकर भी छुड़वा देना चाहिए। फिर अंदर गड़बड़ की है या और कुछ किया है, ऐसा सब देखने की ज़रूरत नहीं है। ठेठ भगवान तक सिफारिश है। भगवान के दरवाज़े तक। फिर दरवाज़े के अंदर सिफारिश नहीं है। जे.पी. को लोग बुलाकर ले आते थे और उसकी फाँसी रुकवा देते थे। सरकार भी जानती थी कि ये लोग जे.पी. को बुला लाते हैं, ऐसे खटपट करनेवाले लोग हैं, लेकिन नियम यानी नियम! अब इस जे.पी. की नज़र से इतना अधिक फायदा होता है तो 'ज्ञानीपुरुष' की नज़र पड़े तो क्या नहीं हो सकता?
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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