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________________ दु:ख मिटाने के साधन (१५) २३९ यह स्वार्थ तो गलत स्वार्थ है, लेकिन इस परार्थ में यानी अभी भी किसी के, औरों के लाभ के लिए जीवन गुज़रे, जैसे कि यह जो मोमबत्ती जलती है, वह क्या खुद के प्रकाश के लिए जलती है? सामनेवाले के लिए, परार्थ के लिए करती है न? सामनेवाले के फायदे के लिए करती है न? उसी तरह अगर ये लोग सामनेवाले के फायदे के लिए जीएँ तो उनका खुद का फायदा तो इसमें है ही। यों भी मरना तो है ही! अतः अगर सामनेवाले का फायदा करने जाएगा तो तेरा फायदा तो अंदर है ही और सामनेवाले को त्रास देने जाएगा तो उसमें तेरा त्रास है ही। तुझे जो करना हो वह कर। तो क्या करना चाहिए? प्रश्नकर्ता : परोपकार के लिए ही जीना चाहिए। दादाश्री : हाँ, परोपकार के लिए ही जीना चाहिए। लेकिन अब यदि तुरंत ही आप ऐसे लाइन बदल लोगे तो ऐसा करते समय पिछले रिएक्शन तो आएँगे ही, तब फिर आप परेशान हो जाओगे कि 'यह तो अभी भी मुझे सहन करना पड़ रहा है!' लेकिन कुछ समय तक सहन करना पड़ेगा, उसके बाद आपको कोई दुःख नहीं रहेगा। लेकिन अभी तो नये सिरे से लाइन बना रहे हो, इसलिए पिछले रिएक्शन तो आएँगे ही। अभी तक जो उल्टा किया था, उसके फल तो आएँगे ही न? परार्थ यानी क्या? परायों के लिए, बच्चों के लिए, औरों के लिए जीना, तब उसमें तुझे क्या मिला? यहाँ करोड़ रुपये इकट्ठे करता है, अणहक्क का लेता है, अणहक्क का सबकुछ भोग लेता है और फिर सबकुछ बच्चों के लिए छोड़कर चला जाता है। ऐसा है यह जगत्! ___ कार्य का हेतु, सेवा या लक्ष्मी? हर एक काम का हेतु होता है कि किस हेतु से यह काम किया जा रहा है। उसमें यदि उच्च हेतु नक्की किया जाए, यानी
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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