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________________ दुःख मिटाने के साधन (१५) २२९ इसलिए हमने क्या कहा है? कि आप कर्ता नहीं हो तो आप जोखिमदार नहीं हो। यदि आप कर्ता हो, जब तक आपको 'मैं चंदूलाल हूँ' ऐसा रहे, तब तक जोखिमदारी आपकी है। प्रश्नकर्ता : तो फिर महावीर स्वामी से गोशाला को दुःख क्यों होना चाहिए? क्योंकि गोशाला तो भगवान से उल्टी ही दिशा में चला था न? दादाश्री : ऐसा है, कि महावीर स्वामी से गोशाला को बहुत ही दुःख होता था कि 'ये महावीर हैं तो मेरी इज़्ज़त चली जाती है, इसलिए अगर ये नहीं हों तो अच्छा।' तब महावीर स्वामी क्या कहते हैं कि, 'यह उसका मोल लिया हुआ दुःख है, मेरा दिया हुआ दुःख नहीं है।' जैसे यह खाने-पीने का बटोरते हैं न? वैसे ही दुःख भी बटोरते हैं। अब ऐसे मोल लिए हुए दु:ख का कोई क्या करे? तब महावीर स्वामी ने कहते हैं कि, 'उसका मोल लिया हुआ दुःख है, उसमें मैं क्या करूँ?' महावीर स्वामी की उपस्थिति में गोशाला को बहुत ही दुःख रहता था। महावीर स्वामी वह जानते भी थे कि इस बेचारे को बहुत दु:ख रहता है और उस दुःख के कारण ही वह बोल रहा था कि, 'ये महावीर ऐसे हैं और वैसे हैं!' उसमें महावीर स्वामी क्या कर सकते थे? क्या वे वहाँ पर उपवास करते? लेकिन भगवान ने तो कहा कि, 'यह इसका मोल लिया हुआ दुःख है। यह दुःख मेरा दिया हुआ नहीं है।' मेरा दिया हुआ और उसका मोल लिया हुआ दु:ख, इन दोनों में बहुत फर्क है। प्रश्नकर्ता : वह समझाइए। दादाश्री : माना हुआ दुःख यानी क्या? अभी आप रोज़ साढ़े बारह बजे खाते हो और एक दिन घर में खाना जरा जल्दी तैयार हो गया हो, तो आपको बुलाने आएँ कि, 'चलो चंदूभाई, भोजन का समय हो गया है, चलो, अभी तक क्यों बैठे हए हो?" तब आप कहो कि, 'भाई, मुझे अभी नहीं खाना है, आप मुझे
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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