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________________ २२८ आप्तवाणी-७ करते हैं, यहाँ हम कारखाने में जाते हैं तब लोगों के साथ फ्रिक्शन हो जाता है तो उस समय उस व्यक्ति में जो परिणाम उत्पन्न हुए और मेरे जो परिणाम उत्पन्न हुए, उसमें उस व्यक्ति के परिणाम तो हम बदलकर अच्छे नहीं कर सके तो हम उतने गुनहगार रहे न? दादाश्री : क्योंकि आपका भाव नहीं बदलता है, इसलिए आपको कोई परेशानी है ही नहीं। प्रश्नकर्ता : लेकिन मेरे कार्य से या मेरे वचन से सामनेवाले व्यक्ति का परिणाम बदला, उसका परिणाम बिगड़ा, उसका क्या? दादाश्री : मेरा कहना यह है कि यदि आप कर्ता हो तब आप पर यह दोष लागू होगा। यदि आप कर्ता नहीं हो तो आप पर यह दोष लागू नहीं होगा। प्रश्नकर्ता : लेकिन अपने बर्ताव से सभी को अच्छा लगना ही चाहिए न? दादाश्री : नहीं, ऐसा कुछ भी नहीं है। ये आपके सफेद बाल देखकर किसी को अच्छा न लगे, तो उसमें आप क्या करोगे? आपके सफेद बाल देखकर सामनेवाले को चिढ़ चढ़े, तो उसमें आपका क्या दोष? यह बहुत सूक्ष्म बात है। यह सब को समझ में नहीं आ सकती। ये लोग तो क्या कहेंगे, 'आपसे सामनेवाले को दुःख हुआ तो आपको दोष लगेगा।' अरे, इन्हें कब अजंपा नहीं होता? आप ऐसा कहो कि, 'साहब, भोजन के लिए चलिए।' तब वह कहेगा, 'मैं रोज़ साढ़े बारह बजे भोजन करनेवाला इंसान, तू साढ़े ग्यारह बजे आकर भोजन के लिए कह रहा है?' यानी इन्हें तो कब दुःख नहीं होगा, वह कह नहीं सकते। इन्हें दुःख होने के कारण कहाँ नहीं हैं? वे दुःखों के कारणों से ही घिरे हुए हैं। आपके सफेद बाल देखकर यदि उसे दुःख हो तो उसमें आप क्या करोगे? दुःख कर भोजन
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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