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________________ १९२ आप्तवाणी-७ देने के बजाय उसकी मुश्किल दूर करने के लिए करे तो वह अच्छा है। दान तो नाम कमाने के लिए करते हैं, उसका क्या मतलब? जो भूखा हो उसे खाने का दो, कपड़े नहीं हों तो कपड़े दो, वर्ना इस काल में दान देने के लिए रुपये कहाँ से लाएगा? सबसे अच्छा तो दान-वान देने की ज़रूरत ही नहीं है। अपने विचार अच्छे करो, दान देने के लिए धन कहाँ से लाए? सच्चा धन आया ही नहीं न! और सच्चा धन सरप्लस रहता भी नहीं है। ये लोग जो बड़े-बड़े दान देते हैं न, वह तो हिसाब से बाहर का, ऊपर का धन आ जाता है, वह है। फिर भी जो दान देते हैं उनके लिए गलत नहीं है। क्योंकि गलत रास्ते से लिया और अच्छे रास्ते पर दिया, तो भी बीच में पाप से मुक्त तो हुआ! खेत में बीज बोया, वह जब उगेगा तब उतना फल तो मिलेगा! प्रश्नकर्ता : कविराज के पद में एक लाइन है न कि, 'दाणचोरी करनाराओ, सोयदाने छूटवा मथे ' 'कर-चोरी करनेवाले, सूई जितना दान करके छूटने के लिए झूझें' तो इसमें एक जगह पर कर-चोरी की और दूसरी जगह पर दान दिया, तो उसने उतना तो प्राप्त किया, ऐसा कह सकते हैं? दादाश्री : नहीं, प्राप्त किया, ऐसा नहीं कह सकते। वह तो नर्क में जाने की निशानी है। वह तो दानत चोर है। करचोर ने चोरी की और सूई का दान दिया। उसके बदले दान नहीं देता और सीधा रहता न, तो भी अच्छा था। ऐसा है न, कि छह महीने जेल की सजा अच्छी, बीच में दो दिन बाग में ले जाएँ तो उसका क्या अर्थ है? ये कवि तो क्या कहना चाहते हैं कि ये सब काला बाज़ार, कर-चोरी, सबकुछ करने के बाद फिर खुद का नाम नहीं बिगडे, खुद का खराब नहीं दिखे, इस वजह से ये लोग पचास हज़ार दान दे देते हैं। इसे सूई का दान कहते हैं।
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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