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________________ भोगवटा, लक्ष्मी का (१३) १९३ प्रश्नकर्ता : यानी आज वैसे सात्विक लोग तो हैं नहीं न! दादाश्री : संपूर्ण सात्विक की तो आशा रखी ही नहीं जा सकती न! लेकिन यह तो किसके लिए है कि जो बड़े लोग करोड़ों रुपये कमाते हैं और इस तरफ एक लाख रुपये दान में देते हैं, वह किसलिए? नाम खराब नहीं हो, उसके लिए। अभी इस काल में ही ऐसा सूई का दान चल रहा है। यह बहुत समझने जैसा है। दूसरे लोग दान देते हैं, कुछ गृहस्थ होते हैं, साधारण स्थिति के होते हैं, वे लोग दान दें उसमें हर्ज नहीं है। यह तो सूई का दान देकर खुद का नाम बिगड़ने नहीं देते, खुद की इज़्ज़त ढंकने के लिए कपड़े बदल देते हैं! सिर्फ दिखावा करने के लिए इस तरह के दान देते हैं! ...लेकिन तख्ती में खत्म हो गया अभी पूरी दुनिया का धन गटर में जा रहा है। इन गटरों के पाइप बड़े कर दिए हैं। वह किसलिए? कि धन को जाने के लिए स्थान चाहिए न? कमाया हुआ सबकुछ खा-पीकर बहाकर सब गटर में जाता है। एक भी पैसा सही मार्ग पर नहीं जाता और जो पैसा खर्च करते हैं, कॉलेज में दान दिया, फलाना दिया, वह सब इगोइज़म है! बिना इगोइज़म के जो पैसा जाए, वह सच्चा कहलाता है। वर्ना इससे तो अहंकार को पोषण मिलता रहता है। कीर्ति मिलती रहती है आराम से! लेकिन कीर्ति मिलने के बाद उसका फल आता है। वापस वह कीर्ति जब पलटती है तब क्या होता है? अपकीर्ति होती है। तब परेशानी ही परेशानी हो जाती है। उसके बजाय कीर्ति की आशा ही नहीं रखनी चाहिए। कीर्ति की आशा रखे तो अपकीर्ति आएगी न? जिसे कीर्ति की आशा नहीं है, उसे अपकीर्ति आएगी ही कैसे? कोई धर्मदान में लाख रुपये दे और तख्ती रखवाए और कोई व्यक्ति एक रुपया ही दान में दे लेकिन गुप्त रूप से दे,
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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