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________________ भोगवटा, लक्ष्मी का (१३) १९१ तो दूसरों को खिला दे। और क्या करना है फिर? क्या कुछ साथ में ले जा सकते हैं? जो धन औरों के लिए खर्च हो, उतना ही धन अपना है। उतनी ही अगले जन्म की सिलक (जमापूँजी)। यानी किसी को यदि अगले जन्म की सिलक जमा करनी हो तो धन औरों के लिए खर्च करना। फिर पराया जीव अर्थात् कोई भी जीव, फिर वह कौआ हो, और वह इतना सा चख भी गया होगा न तो भी आपकी सिलक जमा हो गई। कौए को इतना डाला और वह खा गया, तो आपकी सिलक। लेकिन आप और आपके बच्चों ने खाया, वह सब आपकी सिलक नहीं है, वह सब गटर में गया। तो क्या गटर में जाना बंद किया जा सकता है? नहीं. वह तो अनिवार्य है। है कोई चारा? लेकिन साथ-साथ समझना चाहिए कि जो परायों के लिए खर्च नहीं किया, वह सब गटर में ही जाता है। मनुष्यों को नहीं खिलाओ और अंत में कौओं को खिलाओ, चिड़िया को खिलाओ, सभी को खिलाओ तो भी वह परायों के लिए खर्च किया माना जाएगा। मनुष्य की थाली की क़ीमत तो बहुत बढ़ गई है न? चिड़िया की थाली की क़ीमत बहुत नहीं है न? तब जमा भी उतना कम ही होगा न? दान, हेतु के अनुसार फल प्राप्ति प्रश्नकर्ता : कई ऐसा कहते हैं कि दान करने से देवता बनते हैं, वह सच है न? दादाश्री : दान देकर भी नर्क में जाते हैं, ऐसे भी हैं। क्योंकि दान किसी के दबाव के कारण देते हैं। ऐसा है न, कि इस दूषमकाल में दान करने की लक्ष्मी लोगों के पास है ही नहीं। दूषमकाल में जो लक्ष्मी है वह तो अघोर कर्तव्यवाली लक्ष्मी है। अतः यदि उसका दान दे, तो उससे तो बल्कि नुकसान होगा। लेकिन फिर भी यदि किसी दुःखी इंसान को दे, दान
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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