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________________ १६८ आप्तवाणी-७ दादाश्री : वे कारण खत्म नहीं हो सकते, लेकिन हम पर उन कारणों का कम असर हो, वैसा किया जा सकता है। प्रश्नकर्ता : कारण अच्छे हैं या बुरे, जो कुछ भी भूतकाल में हमने डाले हों या बुने हों, वे रूपक में आने से पहले निर्मूल हो सकते हैं क्या? दादाश्री : नहीं, वे तो उसी भाव से रहेंगे। हाँ, सिर्फ हम इतना कर सकते हैं कि, होली के पास जाएँ तो हमें गर्मी बहत लगती है। फिर भी होली तो उसी भाव से रहेगी, लेकिन अगर हम कुछ चुपड़कर गए हों तो बहुत गर्मी नहीं लगेगी। वर्ना होली उसी भाव से रहेगी। यानी होली अपना भाव छोड़ेगी नहीं। प्रश्नकर्ता : होली अपना भाव छोड़ दे, तो वह होली कहलाएगी ही नहीं। दादाश्री : वह फिर होली कहलाएगी ही नहीं और जगत् पर फिर असर ही नहीं डालेगी। तब तो लोग समझेंगे कि रास्ता मिल गया, भगवान की ज़रूरत ही क्या है? लेकिन उस उपाय का पता चले, ऐसा नहीं है। तो हम भीतर कुछ ऐसा करके होली के पास जाएँ तो असर नहीं हो, ऐसा होता है या नहीं होता? ये मूसलाधार बरसात हो रही हो, लेकिन अगर हम एक छाता ले जाएँ, तो भीतर हमें पानी का एक छींटा भी नहीं छुएगा। यानी कि बरसात बंद नहीं होगी। लोग एविडेन्स बंद करने जाते हैं, वह बंद नहीं होगा। यदि ऐसा होता, तब तो फिर लोग पूरा जगत् ही खत्म कर देते न! इस प्रकार दो ईंटें निकल सकें, तब तो फिर लोग सबकुछ ही तोड़ डालेंगे। लेकिन इसमें से एक भी ईंट हिल नहीं सकती। नहीं तो ये सारे बनिये क्या ऐसे-वैसे हैं? सभी ईंटें निकालकर बेच खाएँगे, लेकिन एक भी एविडेन्स आगेपीछे नहीं हो सकता। यानी अपने ये सारे संयोग भी ऐसे हैं। इसलिए हम तो इस तरह कुछ पहनकर जाते हैं, इधर-उधर से
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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