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________________ फ्रैक्चर हो, तभी से आदि जुड़ने की! (१०) १६९ होकर निकल जाते हैं, टाइम गुज़ार देते हैं, ताकि बहुत घुटन न रहे। टूटे-जुड़े, उसमें 'खुद' कौन? लोग तो, जब अंदर गर्मी लगती है तब क्या कहते हैं? कि, 'मुझे बुखार आ गया।' घरवालों से कहेगा कि, 'थर्मामीटर लाओ।' फिर नापकर कहता है, 'यह तो १०१ डिग्री बुखार चढ़ा है।' डॉक्टर आता है, वह भी कहता है कि, 'बुखार चढ़ा है' और भगवान की भाषा में बुखार उतर रहा है। बुखार की शुरूआत नहीं हुई, बुखार का विनाश हो रहा है। अब यह बात लोगों की समझ में नहीं आती न! विकृत आहार शुरू किया न, तभी से हम नहीं समझ जाएँ कि ये बुखार के कारणों का ही सेवन कर रहा है! तभी से बुखार चढ़ने की शुरूआत कही जाएगी। फिर जब बुखार चढ़ता है, उस समय तो वह बुखार उतरने का कारण है, वह तो अंदर बुखार उतार रहा है। प्रश्नकर्ता : अब बुखार जब अपने आप जा रहा हो, तब उसे निकालने की मेहनत करते हैं। उसका क्या परिणाम आता है? दादाश्री : नहीं, वह मेहनत भी एक निमित्त है। प्रश्नकर्ता : जो स्वाभाविक हो रहा है, उसमें दख़ल करते हैं न? दादाश्री : नहीं, वे दख़ल तो नहीं करते, वह भी स्वभाविक ही हो रहा है। भीतर उसकी ज़रूरत होगी तो हेल्प होगी, लेकिन लोग ज़रूरत से ज़्यादा कर देते हैं। मैं जो बोल रहा हूँ न, वैसा मैं पहले से ही मानता था। अभी यदि बुखार चढ़ गया है, तो वह तो आ ही चुका था। वह बुखार पहले से ही आ चुका था। उसमें नया क्या कहा? और यह तो अब उतर रहा है!
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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