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________________ कढ़ापा-अजंपा (७) कढ़ापे - अजंपे के प्रति नापसंदगी, वह भी जागृति ! बड़े-बड़े सेठों से मैं पूछता हूँ कि, 'सेठ, आप यह महँगे नये कप-प्लेट लाए हो और नौकर उनमें चाय लेकर आ रहा हो, ट्रे में छह कप और छह प्लेट लेकर आ रहा हो और नौकर के हाथ से वह ट्रे गिर जाए, तो आप पर कोई असर होगा?' तब कहते हैं कि, 'अरे, बहुत होगा, ऐसे अजंपा हो जाएगा।' तब मैंने कहा कि, 'क्या आप इस अजंपे के लिए कोई दवाई नहीं चुपड़ते?' तब कहते हैं कि, 'उसकी दवाई होती ही नहीं है न !' मैंने कहा कि, 'तो फिर आप किस आधार पर जीते हो? कोई आधार नहीं है? जीवन का भी आधार चाहिए या नहीं चाहिए?' आपके प्याले फूट जाएँ, तब क्या करोगे आप? प्रश्नकर्ता : कुछ भी नहीं होगा । दादाश्री : क्या बात करते हो? ऐसे पचासी का उधार तो हो चुका, अब और पंद्रह साल आनेवाले हैं, तो सौ पूरे होंगे फिर ? फिर । ११३ प्रश्नकर्ता : भले ही हों, 'यह' प्याला भी फूटना ही है दादाश्री : ऐसा ! देह को प्याला कह रहे हो? तब ठीक ! इसे ज्ञान कहते हैं! वे सेठ तो कहेंगे, 'इसकी दवाई ही नहीं है ! ' तो भाई, तेरी क्या दशा होगी ? फिर से यदि आपको अजंपा हो तो अच्छा लगेगा? प्रश्नकर्ता: नहीं लगेगा । दादाश्री : अब लोग कहते हैं, 'आप जिज्ञासु क्यों नहीं बनते ?' अरे, मुझे जिज्ञासु बनकर क्या करना है? जिसे यह अजंपा पसंद नहीं है, वही जिज्ञासु पद है । जिज्ञासु तो वे लोग बनते हैं कि जिन्हें अजंपा पसंद है ! मुझे अजंपा पसंद नहीं है, तो अब मुझे
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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