SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 155
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ११४ आप्तवाणी-७ जिज्ञासु क्यों बनना है? जिसे यह अजंपा पसंद नहीं है, वही इटसेल्फ उसे मोक्ष में ले जाएगा। कोई कहेगा कि, लोगों को भी अजंपा तो पसंद नहीं है न? नहीं, वह तो यदि उनसे पूछे न, तो कहेंगे कि, 'वह सब तो चाहिए ही न, यह भी होता है और वह भी होता है।' उसे ऐसा नहीं लगता कि यह गलत किया है। प्रश्नकर्ता : अजंपा मोक्ष में कैसे ले जाता है? यदि अजंपा नहीं रहे तो? दादाश्री : यदि यह अजंपा नहीं रहे तो 'उसमें ऐसा सुख है' और अजंपा रहे तो 'उसमें ऐसा दुःख है,' ऐसा उसे ज्ञान बरतता है, इस वजह से उसे वह जो जागृति बरतती है कि 'अजंपा नहीं होना चाहिए। यह गलत है' वही जागृति उसे मोक्ष में ले जाएगी। मनुष्य को अजंपा कैसे सहन हो? यह अजंपा पसंद तो नहीं है, फिर भी लोग क्या कहते हैं कि, 'लेकिन संसार में तो यही रहता है न!' यदि ऐसा ही हो, तो फिर जीने का अर्थ ही क्या है? तो मीनिंगलेस है। और अजंपे के साथ तूने क्या सुख भोगा? ऊपर तलवारें हों और ऐसा भय रहे कि वे गिर जाएँगी, तो तूने खाया कैसे? वो जनक राजा ने एक मुनि को भोजन करवाया था न, इस तरह ऊपर घंट बाँधा था, वे तपस्वी भोले आदमी थे तो जब राजा ने पूछा कि, 'पकौड़ियाँ कैसी थी? श्रीखंड कैसा था?' तब वे तो भोले आदमी, तो कह दिया कि, 'राजा, मैं तो ऊपर से घंट गिरेगा, उसी भय में रहा। मैं खा रहा था, लेकिन मेरा चित्त तो उस घंट में ही था, इसलिए मैं कुछ नहीं जानता कि टेस्ट कैसा था!' राजा ने पूछा कि, 'आपने खाया तो है न?' तब मुनि ने कहा, 'हाँ, खाया तो है।' 'तो वह टेस्ट से खाया?' तब बोले, 'नहीं, वह मैं नहीं जानता।' तब राजा ने कहा कि, 'ऐसा टेस्टी था, फिर भी आपको टेस्ट के बारे में कुछ पता नहीं चला, क्योंकि आपका चित्त घंट में था। उसी तरह हम इन रानियों के गले में ऐसे हाथ डाले रहते हैं, फिर भी हमारा चित्त भगवान में रहता है!'
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy