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________________ भय में भी निर्भयता (६) जा रहे हों और कोई कहे कि, 'यहाँ फलानी जगह पर, आजकल तो लोग लूटने लगे हैं।' तो हम तभी से शंका करने लगें तो क्या होगा? यह ज्ञान सुना तभी से शंका होने लगे, तो क्या होगा? यदि अपने पास दस-पंद्रह हज़ार रुपयों के जेवरात हों तो फिर मन में शंका होती है। अभी तक लुटेरों को देखा नहीं, अभी तक लुटा भी नहीं, लेकिन उससे पहले ही लुट जाता है, घटना होने से पहले ही लुट जाता है! संयोग चुकाएँ काल, तो डर कैसा? हम यात्रा पर गए थे। अड़तीस लोगों को लेकर बस में सब जगह गए थे। तो एक शहर में गए थे। अब उस शहर में पुलिसवालों ने बस रोक दी। हमने पूछा कि, 'क्यों, क्या है?' तब कहा कि, 'यहाँ से आगे नहीं जाना है।' मैंने कहा कि, 'लेकिन कारण क्या है? हम यात्रा पर निकले हैं।' तब उन्होंने कहा कि, 'नहीं, आगे नहीं जाना है क्योंकि आगे इस रास्ते पर लूट होती है। यह चालीस मील का जो रास्ता है, तो बार-बार यहाँ पर लूट होती ही रहती है। इसलिए रात को नहीं जाने देंगे।' मैंने कहा कि, 'तो दिन में क्या चोरी नहीं होती?' तब उन्होंने कहा कि, 'दिन में भी चोरियाँ तो होती हैं।' तब मैंने कहा कि, 'तो अब हम कब जाएँ? रात को जाएँ या दिन में जाएँ?' फिर मैंने पुलिसवाले से कहा कि, 'हमें जाने दीजिए, हमें कोई परेशानी नहीं है, हमारी ज़िम्मेदारी पर जाने दीजिए।' तब पुलिसवाले ने कहा कि, 'तो आप जाइए, लेकिन इन दो पुलिसवालों को साथ ले जाना पड़ेगा।' तब मैंने कहा कि, 'भाई, बिठा दो।' तो बंदूक सहित दो पुलिसवालों को बस में बिठाया। लेकिन रास्ता पार कर लिया। कुछ भी नहीं हुआ। यानी कोई बाप भी छूए ऐसा नहीं है। इस जगत् में डरने की ज़रूरत है ही नहीं। वे लुटेरे तो रात के एक बजे तक बैठे रहे होंगे, फिर कहेंगे कि, 'आज कोई शिकार नहीं मिल रहा है।' और वे चले जाते हैं। वे पाँच मिनट पहले ही
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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