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________________ आप्तवाणी-७ दादाश्री : इलाज करवाना पड़ेगा या नहीं करवाना पड़ेगा, ऐसे ना या हाँ हम नहीं कहते। मैं ऐसा कह रहा हूँ कि भीतर अंत:करण में जो विचार आएँ, 'व्यवस्थित' जैसा करवाए उस अनुसार करना, लेकिन ये शंकाएँ मत रखना। किसी भी प्रकार की शंका मत रखना। इलाज करवाना। भीतर विचार आए कि, 'चलो, डॉक्टर के वहाँ,' तो डॉक्टर के वहाँ जाना। डॉक्टर की दवाई भी लेना। लेकिन अगर डॉक्टर कहे कि, 'आपका प्रेशर बहुत बढ़ गया है।' तो वह हमें अपने अंदर नोट नहीं करना है, उसे अंदर लिखकर नहीं रखना है। समझना कि भाई, डॉक्टर ने ऐसा कहा है और भीतर शंका हो जाए तो डॉक्टर से पूछना चाहिए कि, 'आपके घर पर कभी कोई व्यक्ति मरता नहीं है न? तो मैं आपका शब्द मानूँगा।' तब डॉक्टर ही कहेगा कि, 'नहीं, मेरे यहाँ भी मर गए हैं!' तो फिर उसमें शंका रखने से क्या मिलेगा? डॉक्टर के वहाँ भी मर जाते हैं न! अतः हमें साधारण रूप से डॉक्टर से इलाज करवाना. लेकिन शंका मत रखना। डॉक्टर तो क्या करते हैं? वे बेचारे चेतावनी देते हैं कि 'बहुत प्रेशर है तो आप इस तरह से रहना,' तो हमें उस तरह से रहना चाहिए, लेकिन शंका मत रखना कि मुझे बहुत ब्लड प्रेशर है। अब क्या होगा? लोग शंका से ही मर जाते हैं। यदि डॉक्टर ने ऐसा नहीं कहा होता कि 'प्रेशर है' तो चलता रहता। पंद्रह सालों तक कुछ भी नहीं होता। और 'प्रेशर है' ऐसा पता चला कि फिर बिगड़ा। फिर डिप्रेशन आता है और मन पर साइकोलोजिकल इफेक्ट रहा करता है। डॉक्टर जो कहता है, वह तो उसे भीतर से जो प्रेरणा होती है, वही कहता है। वह गलत नहीं कहता है। उसका मानना भी सही और दवाई भी लेना, लेकिन किसी प्रकार की शंका मत रखना, क्योंकि, यह सारी सत्ता क्या किसी के हाथ में है? । प्रश्नकर्ता : नहीं, ऐसी सत्ता किसी के हाथ में नहीं है। दादाश्री : तो शंका किसलिए? यहाँ से हम दूसरे शहर
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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