SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 106
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चिंता से मुक्ति (५) चिंता करने से तो अंतराय कर्म डलता है बल्कि, उससे काम लंबा हो जाता है। आपको कोई कहे कि 'फलानी जगह पर लड़का है,' तो आप प्रयत्न करना । भगवान ने चिंता करने को मना किया है। चिंता करने से तो एक और अंतराय पड़ जाता है। और वीतराग भगवान ने क्या कहा है कि, 'भाई, आप चिंता कर रहे हो, तो क्या आप ही मालिक हो? आप ही दुनिया चला रहे हो?' इसे इस तरह देखने जाएँ तो खुद को संडास जाने की भी स्वतंत्र शक्ति नहीं है, वह तो जब बंद हो जाए तब डॉक्टर को बुलाना पड़ता है। तब तक हमें यही लगता रहता है कि 'यह शक्ति अपनी है, ' लेकिन वह शक्ति अपनी नहीं है वह शक्ति किसके अधीन है? क्या वह सब जान नहीं लेना पड़ेगा? 1 ६५ ऐसा है, कि अपने यहाँ तो जब से लड़की सात साल की हो तभी से सोचने लगते हैं कि 'यह अब बड़ी हो गई है, यह बड़ी हो गई!' शादी तो बीसवें साल में होगी लेकिन तभी से चिंता करने लगते हैं ! बेटी की शादी की चिंता कब से शुरू करनी चाहिए, ऐसा कौन से शास्त्र में लिखा है? बीसवें साल में इसका विवाह होना हो तो हमें कब से चिंता शुरू करनी चाहिए? दोतीन साल की हो, तब से? प्रश्नकर्ता : चौदह-पंद्रह साल की हो जाने के बाद माँबाप सोचते हैं न? दादाश्री : नहीं। तब भी फिर पाँच साल बचे हैं न! उन पाँच सालों में चिंता करनेवाला मर जाएगा या जिसकी चिंता कर रहे हैं वह मर जाएगा, उसका क्या ठिकाना ? पाँच साल बाकी हैं, तो पहले से ही चिंता क्यों करनी चाहिए? प्रश्नकर्ता : यदि ऐसा होता तब तो लोग कमाने ही नहीं जाएँगे और कोई चिंता ही नहीं करेगा। दादाश्री : नहीं । कमाने जाते हैं, वह भी उनके हाथ में
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy