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________________ ६६ आप्तवाणी-७ है ही नहीं न! वे लट्टू हैं। वे सब नेचर के घुमाने से घूमते हैं और ये ऐसा कहकर अंहकार करते हैं कि, 'मैं कमाने गया था ! ' और बिना बात की चिंता करते हैं ! फिर वह भी देखादेखी से कि फलाने भाई को तो देखो न, बेटी की शादी करने की कितनी चिंता है और मैं चिंता नहीं कर रहा ! उसी चिंता में फिर तरबूज़े जैसा हो जाता है ! और जब बेटी की शादी का समय आए तब चार आने भी हाथ में नहीं होते । चिंतावाला रुपये लाए कहाँ से? लक्ष्मी का स्वभाव कैसा है कि जो आनंदी हो उसी के वहाँ लक्ष्मी जी मुकाम करती हैं, वर्ना चिंतावाले के वहाँ मुकाम नहीं करतीं। जो आनंदी होता है, जो भगवान को याद करता है, लक्ष्मीजी उसके वहाँ जाती हैं। जबकि ये तो बेटी की अभी से चिंता कर रहे हैं। आपको चिंता कब करनी है? कि जब आसपासवाले लोग कहने लगें कि, 'बेटी का कुछ किया?' तब हमें समझना चाहिए कि अब चिंता करने का समय आ गया है और तभी से चिंता करनी है, यानी क्या कि उसके लिए प्रयत्न करने लगो ! ये तो आसपासवाले कोई कुछ कहते नहीं और उससे पहले ही, यह तो पंद्रह साल पहले ही चिंता करने लगता है ! फिर उसकी पत्नी से भी कहता है कि, 'तुझे याद रहेगा कि अपनी बेटी बड़ी हो रही है, उसकी शादी करनी है?' अरे, अब पत्नी को किसलिए चिंता करवा रहा है? अपने लोग तो कैसे हैं कि एक साल अकाल पड़ा हो तो दूसरे साल 'क्या होगा, अब क्या होगा, अब क्या होगा' ऐसा करते रहते हैं। तो भादो के महीने से ही चिंता करने लगता है । अरे, ऐसा किसलिए कर रहा है? वह तो जिस दिन तेरे पास खाने-पीने का खत्म हो जाए और कोई इंतज़ाम नहीं हो, उस दिन चिंता करना न ! प्रश्नकर्ता : इस साल बरसात कम हुई, तभी से लोगों ने
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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