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________________ ६४ आप्तवाणी-७ रात-दिन चिंता करती हो? कब तक करोगी? उसका अंत कब आएगा? वह मुझे बताओ। यह बेटी तो अपना लेकर आई है। क्या आप अपना सबकुछ लेकर नहीं आई थीं? यह सेठ आपको मिले या नहीं मिले? जब सेठ आपको मिले, तो इस बेटी को कोई क्यों नहीं मिलेगा? आप ज़रा तो धीरज रखो। वीतराग मार्ग में हो और इस प्रकार धीरज नहीं रखोगी तो उससे आर्तध्यान होगा, रौद्रध्यान होगा। प्रश्नकर्ता : ऐसा नहीं है लेकिन स्वभाविक फिक्र तो होगी न! दादाश्री : वह स्वभाविक फिक्र, वही आर्तध्यान और रौद्रध्यान कहलाता है, भीतर आत्मा को पीड़ित किया हमने। दूसरों को पीड़ा नहीं दे रही हो तो ठीक है, लेकिन यह तो आत्मा को पीड़ित किया। इसका चलानेवाला कौन होगा? बहन, आप तो जानती होंगी? ये सेठ जानते होंगे? कोई चलानेवाला होगा या आप चलाती हो? प्रश्नकर्ता : कोई नहीं। दादाश्री : किसी के बगैर यह कैसे चल सकता है? कोई तो संचालक होगा न? संचालक के बिना तो चलेगा ही नहीं न? ऐसा है, कि कभी जब बुखार आता है, तब मन में ऐसा लगता है कि 'मुझे बुखार आया,' लेकिन 'किसने भेजा' उसका पता नहीं लगाते। इसलिए मन में क्या लगता है कि अब बुखार नहीं जाएगा तो क्या करूँगी? अरे भाई आया है, भेजनेवाले ने उसे भेजा है, और वापस बुलवा लेंगे, हमें फिक्र करनी रही ही कहाँ? हमने नहीं बुलाया है, भेजनेवाले ने भेजा है, वे वापस बुला लेंगे, यह सब कुदरती रचना है। अगर सोचना है तो हमें खाने से पहले सोचना चाहिए कि यह दाल मुझे वायु करेगी या नहीं? लेकिन यदि खाने के बाद ऐसा सोचे कि 'अब मुझे क्या होगा, क्या होगा,' तो उसका क्या अर्थ है?
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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