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________________ आप्तवाणी- -७ भला कौन करे ? अतः भगवान पर विश्वास रखो । भगवान आपका थोड़ा बहुत चलाते होंगे या नहीं? अंदर भोजन डालने के बाद क्या फिर चिंता करते हो? पाचक रस डल गए या नहीं, पित्त डल गया, ऐसी सब चिंताएँ नहीं करते ? ' इसमें से खून बनेगा या नहीं बनेगा? इसमें से संडास बनेगा या नहीं?' ऐसी चिंता करते हो? यानी चलाने के लिए ये अंदर का बहुत कुछ है, बाहर तो क्या चलाना है, कि उसकी चिंता करते हो? फिर भगवान को बुरा ही लगेगा न! अहंकार करते हो, इसलिए चिंता होती है । चिंता करनेवाले लोग अहंकारी कहलाते हैं । एक हफ्ता सब भगवान पर छोड़कर चिंता करना बंद कर दो। फिर यहाँ पर कभी भगवान का साक्षात्कार करवा देंगे, तब हमेशा के लिए चिंता मिट जाएगी ! चिंता जाए, तभी से समाधि चिंता नहीं हो तब सचमुच में उलझन गई । चिंता नहीं हो, वरीज़ नहीं हों और उपाधि में समता रहे, उपाधि में भीतर समाधि रहे तो समझना कि सचमुच में उलझन चली गई । प्रश्नकर्ता : ऐसी समाधि लानी हो फिर भी नहीं आती। दादाश्री : वह तो ऐसे लाने से नहीं आएगी! 'ज्ञानीपुरुष' उलझन निकाल दें, सबकुछ शुद्ध कर दें तब निरंतर समाधि रहेगी । ६० प्रश्नकर्ता : क्या वह भी 'व्यवस्थित' नहीं है कि 'उलझन निकलेगी ही नहीं?' दादाश्री : आपकी उलझनें नहीं निकलतीं, वह भी 'व्यवस्थित' ही है और उलझनें निकल जाएँ, वह भी 'व्यवस्थित' ही है । इसीलिए मैं कहता हूँ न, मैं तो निमित्त हूँ, मैं कुछ इसका कर्ता नहीं हूँ। चिंता चली जाए, उसी को समाधि कहते हैं। उससे फिर काम भी पहले से ज़्यादा होगा, क्योंकि उलझन नहीं रहीं न फिर ! ऑफिस में जाकर बैठे कि काम शुरू। घर के विचार नहीं आएँगे,
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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