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________________ चिंता से मुक्ति (५) से कह देना चाहिए कि, 'भाई, हमें चिंता होती है, इसलिए अब हम यहाँ पर नहीं आएँगे, वर्ना आप कुछ ऐसा इलाज कीजिए कि चिंता नहीं हो । ' ५९ प्रश्नकर्ता : ऑफिस में जाऊँ या घर आऊँ, फिर भी कहीं मन नहीं लगता। दादाश्री : ऑफिस में तो आप नौकरी के लिए जाते हो और तनख़्वाह तो चाहिए न ! घर संसार चलाना है, इसलिए घर नहीं छोड़ देना है, नौकरी नहीं छोड़ देनी है। लेकिन जहाँ पर चिंता नहीं मिटे वह सत्संग छोड़ देना। दूसरा नया सत्संग ढूँढना, तीसरे सत्संग में जाना । कई तरह के सत्संग होते हैं, लेकिन सत्संग से चिंता जानी चाहिए। किसी और सत्संग में नहीं गए? प्रश्नकर्ता : लेकिन हमें ऐसा कहा गया है कि भगवान आपके अंदर ही हैं, आपको शांति अंदर से ही मिलेगी, बाहर भटकना बंद कर दो I दादाश्री : हाँ, ठीक है । प्रश्नकर्ता : लेकिन अंदर जो भगवान बिराजमान हैं, ज़रा सा भी अनुभव नहीं होता । उनका I दादाश्री : चिंता में अनुभव नहीं होता । चिंता होगी, तो जो अनुभव हुआ होगा वह भी चला जाएगा । चिंता तो एक प्रकार का अहंकार कहलाता है। भगवान कहते हैं कि, " तू अहंकार करता है ? तो हमारे पास से चला जा ! जिसे चलाने का ऐसा अहंकार हो कि 'यह मैं चलाता हूँ' वही चिंता करेगा न?” भगवान पर ज़रा सा भी विश्वास नहीं हो वही चिंता करेगा न? प्रश्नकर्ता : भगवान पर तो विश्वास है । दादाश्री : विश्वास हो तो ऐसा करे ही नहीं न ! भगवान के विश्वास पर छोड़कर चैन से ओढ़कर सो जाएगा । उसकी चिंता
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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