SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 102
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चिंता से मुक्ति (५) बाहर के विचार नहीं आएँगे, अन्य कोई भी विचार नहीं आएँगे और संपूर्ण एकाग्रता रहेगी। ६१ जिसके संसार के काम बिगड़ते हैं, उसके लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता कि 'धर्म प्राप्त किया ।' संसार का काम सुधरना चाहिए, संसार सुधरना चाहिए। आसपासवाले भी कहें कि, 'नहीं भाई, ये बहुत अच्छे आदमी हैं।' जबकि भक्त तो बहुत बावरे होते हैं, उनका तो संसार भी बिगड़ता है और धर्म भी बिगड़ता है, सबकुछ बिगड़ जाता है, और ये तो ज्ञानी कहलाते हैं, व्यवहार में एक्ज़ेक्ट रहते हैं। यह ज्ञान तो लोगों का काम ही निकाल देगा, वर्ना अशांति से इंसान को पाप बँधते हैं। इंसान को जब अशांति हो जाती हैं न, तब सामनेवाले लोग यदि अच्छे हों, फिर भी खराब दिखाई देते हैं, लेकिन यदि अंदर शांति है तो कोई सामनेवाला व्यक्ति यदि खराब होगा तो भी अच्छा लगेगा। बेटाइम की चिंता यह तो साइन्स है, कभी-कभी ही अक्रम विज्ञान निकलता है, अक्रम यानी क्रम वगैरह नहीं । यह मुख्य मार्ग नहीं है, यह तो पगडंडीवाला रास्ता है, मुख्य मार्ग तो चल ही रहा है न! वह मार्ग अभी मूल स्टेज में नहीं है, अभी अपसेट हो गया है। सभी धर्म अपसेट हो गए हैं। जब धर्म मूल स्टेज में था तब तो जैनों के और वैष्णवों के घर बगैर चिंता के चलते थे। आजकल तो बेटी तीन साल की हो तभी से कहेगा कि, 'देखो न, मुझे इस बेटी की शादी करवानी है ।' 'अरे, बेटी की शादी बीस साल की उम्र में होगी, लेकिन अभी से किसलिए चिंता करता है ? सत्रह साल पहले शादी की चिंता कर रहा है, तो मरने की चिंता क्यों नहीं करता?' तब कहेगा कि, 'नहीं, मरने का तो याद ही मत करवाओ।' तब मैंने कहा कि, 'मरने की बात सुनने में क्या आपत्ति है ? क्या आप नहीं मरनेवाले?' तब कहता है कि, 'लेकिन यदि मरने का याद करवाओगे न, तो आज का सुख चला जाएगा, आज
SR No.030018
Book TitleAptavani Shreni 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy