SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 256
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आप्तवाणी-६ २३१ दादाश्री : सर्जक शक्ति यानी हम क्या कहना चाहते हैं कि सूर्योदय कब होता है कि जब साइन्टिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडेन्स मिल जाएँ तब उदय होता है। यह घड़ी चार बजाए, उसकी घड़ी में भी चार बजें, मुंबई की बड़ी घड़ी में भी चार बजे और यहाँ सूर्यनारायण आ जाएँ ऐसा नहीं होता। सूर्यनारायण को जल्दबाजी हो फिर भी उनसे यहाँ आया नहीं जा सकेगा! उनका सूर्योदय कब होगा? जब सभी ‘एविडेन्स' मिल जाएँगे तब! अर्थात् जो उदयकर्म हैं, वे सर्जक शक्ति के अधीन है। सर्जक शक्ति, उसे हम 'चार्ज' कहते हैं। उसे पुरुषार्थ नहीं कहते। प्रश्नकर्ता : भाव को ही पुरुषार्थ कहा जाता है न? अपना सच्चा भाव जाना, स्वभाव को गुणों से जाना, वही पुरुषार्थ है न? दादाश्री : भावाभाव को हमने पूरा लटूछाप में डाल दिया है और हमें तो स्वभाव-भाव है। भावाभाव, वह कर्म है, और स्वभाव-भाव में ज्ञाता-दृष्टा और परमानंद होता है। अपने महात्मा स्वभाव भाव में रहते हैं, इसलिए भीतर उन्हें आनंद रहता ही है, परंतु वे चखते नहीं। जब उसे चखने का समय आता है, तब वे गए होते हैं दूसरे कहीं होटल में, इसलिए पता नहीं चलता। प्रश्नकर्ता : यानी महात्मा उसे किस लक्षण से चखते हैं? बिना जाने चखते हैं, वह पुरुषार्थ लक्षण से या उदय लक्षण से? दादाश्री : पुरुषार्थ तो उनका चल ही रहा है, परंतु पराक्रम की दृष्टि से चखते हैं। प्रश्नकर्ता : महात्माओं में पराक्रम खड़ा नहीं हुआ है। यानी उसका अर्थ यह है कि उनको यथार्थ पुरुषार्थ नहीं है। दादाश्री : पुरुषार्थ है ही सभी महात्माओं में, परंतु वे अभी तक पराक्रम भाव में नहीं आए हैं। कुछ सामायिक करके पराक्रम में आते हैं। पुरुष होने के बाद पुरुषार्थ होगा ही न! वह तो स्वाभाविक रूप से होता है। प्रश्नकर्ता : इसमें कोई नियम नहीं है न? कईबार सामायिक में
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy