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________________ २३० आप्तवाणी-६ सकता है। वह तप भी नैमित्तिक तप है। यदि वह खुद कर कर सकता, तब तो वह कर्ता कहलाता। अर्थात् वह नैमित्तिक तप है। यानी कि उदय में तप आए तो वे कर्म खत्म हो जाते हैं, वर्ना वैसा होता नहीं। वह तप करने जाए कि कल करूँगा, तो वह नहीं हो पाएगा और ऐसे करते-करते अर्थी निकल जाएगी! और फिर किसी के कंधे पर चढ़कर जाना पड़ता है। उद्दीरणा नहीं हो, तो ऋण चुकाने आना पड़ेगा। उद्दीरणा का अर्थ क्या कि जो विपाक नहीं हुए हों, ऐसे कर्मों का विपाक करके उदय में लाना। जो चरम शरीरी हों, वे ला सकते हैं। यदि चरम शरीरी के कर्म अधिक हों, तो वह यह उद्दीरणा कर सकता है। परंतु वह कैसा होना चाहिए? सत्ताधीश होना चाहिए। पुरुषार्थ सहित होना चाहिए। पुरुष हुए बगैर सभी लटू कहलाते हैं। नामधारी मात्र, लटू कहलाते हैं। इस लटू में यहाँ से श्वास अंदर गया कि लटू घूमा, फिर उसकी डोरी खुलती जाती है। वह हमें दिखता भी है कि डोरी खुल रही है। इसीलिए तो हमने पूरे वर्ल्ड को लटूछाप कहा है। उसके खुलासे की ज़रूरत हो तो कर देंगे। हम जितने शब्द बोलते हैं, उन सभी का खुलासा देने के लिए बोलते हैं। इन दादा ने जो ज्ञान देखा है, उस ज्ञान और अज्ञान को, दोनों को बिल्कुल अलग-अलग देखा है। पुरुषार्थ उदयाधीन नहीं होता, पुरुषार्थ तो जितना करो उतना आपका। हमारे महात्मा पुरुष बने, उनके भीतर निरंतर पुरुषार्थ हो रहा है। पुरुष, पुरुषधर्म में आ चुका है और इसीलिए प्रज्ञा चेतावनी देती है! पूरे जगत् को हम लटू कहते हैं। लटू का खुद का क्या पुरुषार्थ? ये यहाँ से श्वास अंदर गया तो लटू घूमता रहेगा और यदि श्वास दब गया तो लटू गिर जाएगा! और अपने महात्मा तो पुरुष बने हैं, इसीलिए उनका श्वास नहीं चले और जब अंदर घबराहट होती है, तब फिर खुद की गुफा में चले जाते हैं कि 'चलो, अपनी 'सेफसाइड'वाली जगह में।' अर्थात् खुद अमरपद के भानवाले हैं ये! पराक्रमभाव प्रश्नकर्ता : 'चार्ज पोइन्ट' के अलावा वह जो सर्जक शक्ति है, वह क्या है? पुरुषार्थ है?
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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