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________________ २२२ आप्तवाणी-६ कि बैर नहीं बढ़े ! और बैर बढ़ने का मुख्य कारखाना कौन सा है? यह स्त्री-विषय और पुरुष-विषय! प्रश्नकर्ता : उसमें बैर किस तरह बंधता है? अनंतकाल का बैरबीज पड़ता है, वह कैसे? दादाश्री : ऐसा है न कि यह मरा हुआ पुरुष या मरी हुई स्त्री हो, तो ऐसा मानें न कि उसमें कुछ दवाई भरकर पुरुष, पुरुष जैसा ही रहता हो और स्त्री, स्त्री जैसी ही रहती हो तो उनके साथ कोई हर्ज नहीं है। उनके साथ बैर नहीं बंधेगा, क्योंकि वह जीवित नहीं है और यह तो जीवित है, वहाँ बैर बंधते हैं। प्रश्नकर्ता : वे किसलिए बंधते हैं? दादाश्री : अभिप्राय डिफरेन्ट हैं इसलिए! आप कहते हो कि 'मुझे अभी सिनेमा देखने जाना है।' तब वे कहेंगी कि 'नहीं, आज तो मुझे नाटक देखने जाना है!' यानी टाइमिंग नहीं मिलते! यदि एक्जेक्ट टाइमिंग पर टाइमिंग मिल जाएँ, तभी विवाह करना! प्रश्नकर्ता : फिर भी यदि कोई ऐसा हो कि जैसा वह कहे, वैसा हो भी सही। दादाश्री : वह तो कोई ग़ज़ब का पुण्यशाली होगा तो, उसकी स्त्री निरंतर उसके अधीन रहेगी! उस स्त्री के लिए फिर और कुछ भी उसका खुद का नहीं होता, खुद का कोई अभिप्राय ही नहीं होता, वह निरंतर अधीन ही रहती है! ऐसा है, इन संसारियों को ज्ञान दिया है। मैंने साधु बनने के लिए नहीं कहा, परंतु जो फाइलें हैं उनका 'समभाव से निकाल करो, कहा है! और प्रतिक्रमण करो। ये दो उपाय बताए हैं ! ये दोनों करोगे तो आपकी दशा को कोई उलझानेवाला है ही नहीं! उपाय नहीं बताए हों तो किनारे पर खड़े रह ही नहीं पाते न? किनारे पर जोखिम है! आपको वाइफ के साथ मतभेद होता था, उस घड़ी राग होता था या द्वेष?
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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