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________________ २१८ आप्तवाणी-६ भी हमें उसे जानना है। लक्ष्य में होता है कि हमें जाना है उत्तर में, लेकिन ले जा रही है दक्षिण में। वह लक्ष्य कभी भी चूकना नहीं चाहिए। परंतु रास्ते में कोई दूसरा नाव वाला मिले और शीशियाँ दिखाए तो अंदर गलगलिया हो जाता है, उसकी परेशानी है। फिर वह उत्तर दिशा को बिल्कुल भूल जाता है और वहीं पर मुकाम कर लेता है। यह सब अटकण कहलाती है। इसलिए हम कहते हैं कि सब तरफ से आप छूट जाओ। अब 'पुरुष' बने हो आप, इसलिए पराक्रम कर सकोगे। नहीं तो मनुष्य पूर्णरूप से प्रकृति के अधीन है, लटू स्वरूप है! उस लटू की दशा में से मुक्त होकर पराक्रमी बने हो, स्व-पुरुषार्थ और स्व-पराक्रम सहित हो! और 'ज्ञानीपुरुष' की छत्रछाया आप पर है। फिर आपको क्या डर है? प्रश्नकर्ता : इसके लिए आपके साथ रहने की ज़रूरत है क्या? दादाश्री : नहीं, साथ में रहने का तो सवाल ही नहीं है, परंतु अधिक टच में तो रहना ही पडेगा न! टच में रहोगे तो निकल गया, ऐसा पता चलेगा न? आप दूर होंगे, तो कैसे पता चलेगा? और टच में रहोगे तो यह रोग निकालने की शक्ति भी उत्पन्न होगी न! खुद की शक्ति से अटकण निकालनी और पराक्रम करना, वह कुछ आसान नहीं है। यहाँ से' शक्ति लेकर करो, तभी पराक्रम होगा। पहले तो, ये अटकणें पहचान में ही नहीं आतीं कि उनके रूप कैसे होते हैं, उनका चरित्तर (पाखंड से भरा हुआ वर्तन) कैसा होता है ! इसलिए उस अटकण को ढूँढ निकालना है कि यह गलगलिया कहाँ पर हो जाते हैं, शान-भान कहाँ पर खो देते हैं? इतना ही देख लेना है ! 'आपको' ध्यान कितना रखना है इस चंदभाई का! उससे कहना कि 'तुम सबकुछ खाना, पीना, दादा की आज्ञा के अनुसार चलना, उसमें कमी रही तो देख लेंगे।' परंतु चंदूभाई को कहाँ पर गलगलिया होते हैं, इसका 'हमें ध्यान रखना है। C.I.D. की तरह उस पर नज़र रखना। क्योंकि अनादिकाल से अटकण से ही इस जगत् में लटका हुआ है, और फिर वह अटकण छूटती भी नहीं! वह तो अभी ये 'ज्ञानीपुरुष' हैं, ये अटकण छुड़वा देंगे!
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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