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________________ आप्तवाणी- -६ २१९ सब से बड़ी अटकण, विषय से संबंधित ! कृपालुदेव को लल्लूजी महाराज ने सूरत से पत्र लिखा था कि हमें आपके दर्शन करने के लिए मुंबई आना है। तब कृपालुदेव ने कहा कि, 'मुंबई तो मोहमयी नगरी है । साधु - आचार्यों के लिए यह काम की नहीं है। यहाँ पर तो जहाँ-तहाँ से मोह घुस जाएगा, आपके मुँह में से नहीं घुसेगा तो कान में से घुस जाएगा, आँख में से घुस जाएगा। आखिर में ये हवा जाने के छिद्र हैं, उनमें से भी मोह घुस जाएगा ! इसलिए यहाँ पर आने में फायदा नहीं है।' इसका नाम कृपालुदेव ने क्या रखा? 'मोहमयी नगरी ! ' उसमें मैंने आपको यह ज्ञान दिया है, अब क्या वह मोहमयी कुछ उड़ गई है? क्या बी-ओ-एम- बी-ए-वाय - बोम्बे हो गया? नहीं । मोहमयी ही है इसीलिए हम आपसे कहते हैं कि दूसरे पाँच इन्द्रियों के विषय नहीं, परंतु स्त्रियों को और पुरुषों को इतना ही कहते हैं कि जहाँ पर स्त्री विषय या पुरुष विषय संबंधी विचार आया कि तुरंत वहीं के वहीं आपको प्रतिक्रमण कर देना चाहिए। ऑन द स्पॉट तो कर ही देना चाहिए, परंतु फिर बाद में उसके सौ-दो सौ प्रतिक्रमण कर लेना । I कभी होटल में नाश्ता करने गए हों और उसका प्रतिक्रमण नहीं किया हो तो चलेगा। मैं उसका प्रतिक्रमण करवा लूँगा, परंतु यह विषय संबंधी रोग नहीं घुसना चाहिए। यह तो भारी रोग है । इस रोग को निकालने की औषधि क्या? तब कहे कि, हर एक मनुष्य को जहाँ पर अटकण हो, वहाँ पर यह रोग होता है । किसी पुरुष को, यदि कोई स्त्री जा रही हो तो वह उसे देखे और तुरंत ही उसके अंदर वातावरण बदल जाता है। अब ये सब वैसे तो हैं तरबूजे ही, परंतु उसने तो विस्तारपूर्वक उसका रूप ढूँढ निकाला होता है ! इस फूट (एक प्रकार की ककड़ी) के ढेर पर क्या उसे राग होता है? परंतु मनुष्य है इसलिए उसे रूप की पहले से आदत है।‘ये आँखें कितनी सुंदर हैं ! बड़ी-बड़ी आँखें हैं !' ऐसे कहता है। अरे, बड़ी-बड़ी अच्छी आँखें तो उस भैंस के भाई की भी होती हैं । वहाँ पर क्यों राग नहीं होता तुझे?' तब कहता है कि, 'वह तो भैंसा है और यह तो मनुष्य है।' अरे, यह तो फँसने की जगह है!
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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