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________________ आप्तवाणी-६ २०५ प्रश्नकर्ता : अंदर बातचीत तो मेरी घंटों तक चलती है। दादाश्री : परंतु अंदर बातचीत करने में और अन्य फोन ले लेते हैं, इसलिए उन्हें सामने बैठाकर ऊँची आवाज़ में बातचीत करनी चाहिए, ताकि अन्य कोई फोन ले ही नहीं न ! प्रश्नकर्ता : खुद को सामने किस तरह बैठाएँ? दादाश्री : तू 'चंदूभाई' को सामने बैठाकर डाँट रहा हो तो 'चंदूभाई' बहुत समझदार बन जाएँगे। तू खुद ही डाँटे कि, 'चंदूभाई, ऐसा तो होता होगा? यह आपने क्या लगा रखा है? और कर रहे हो तो अब सीधा करो न?' ऐसा आप कहो तो क्या बुरा है? कोई और झिड़के तो अच्छा लगेगा? इसलिए हम आपको चंदूभाई को डाँटने का कहते हैं। नहीं तो बिल्कुल अंधेर ही चलता रहेगा! यह पुद्गल क्या कहता है कि 'आप तो 'शुद्धात्मा' हो गए, परंतु हमारा क्या?' वह दावा दायर करता है, वह भी हक़दार है। वह भी इच्छा रखता है कि हमें भी कुछ चाहिए।' इसलिए उसे पटा लेना चाहिए। वह तो भोला है। भोला इसलिए है कि मूर्ख की संगत मिले तो मूर्ख बन जाता है और समझदार की संगत मिले तो समझदार बन जाता है। चोर की संगत मिले तो चोर बन जाता है ! जैसा संग वैसा रंग! परंतु वह खुद का हक़ छोड़ दे, ऐसा नहीं है। तुझे 'चंदूभाई' को दर्पण के सामने बैठाकर ऐसा प्रयोग करना चाहिए। दर्पण में तो मुँह वगैरह सब दिखता है। फिर आप 'चंदूभाई' से कहें 'आपने ऐसा क्यों किया? आपको ऐसा नहीं करना है। पत्नी के साथ मतभेद क्यों करते हो? तो फिर आपने शादी क्यों की? शादी करने के बाद ऐसा क्यों करते हो?' ऐसा सब कहना पड़ेगा। ऐसे दर्पण में देखकर उलाहना दोगे, एक-एक घंटा, तो बहुत शक्ति बढ़ जाएगी। यह बहुत बड़ी सामायिक कहलाती है। आपको चंदूभाई की सभी भूलों का पता चलता है न? जितनी भूलें दिखें उतनी आपने चंदूभाई को दपर्ण के सामने एक घंटे तक बैठाकर कह दी तो वह सब से बड़ी सामायिक!
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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