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________________ २०४ आप्तवाणी-६ दादाश्री : वह उसका भाव छोड़ता नहीं न? वह अपना हक़ छोड़ेगा क्या? इसलिए हमें उसे समझा-समझाकर, पटा-पटाकर काम लेना पड़ेगा। क्योंकि वह तो भोला है। पुद्गल का स्वभाव कैसा है? भोला है। तो उसे इस प्रकार कलापूर्वक करेंगे तो वह पकड़ में आ जाएगा। जीव और शिव भाव दोनों अलग ही हैं न? अभी जीवभाव में आएगा, उस घड़ी आलूबड़ा वगैरह सब खाएगा और शिवभाव में आएगा तब दर्शन करेगा! प्रश्नकर्ता : परंतु जीव का मन स्वतंत्र है? दादाश्री : बिल्कुल स्वतंत्र है। मन आपका विरोध करे, ऐसा आपने देखा है या नहीं? अरे, 'मेरा' मन होगा तो, वह मेरा विरोधी किस तरह बनेगा? इस तरह विरोध करे, तब पता नहीं चल जाएगा कि वह स्वतंत्र है या नहीं? प्रश्नकर्ता : वाणी पर कंट्रोल नहीं है, इसलिए मन पर भी कंट्रोल नहीं है। दादाश्री : जो विरोध करे उस पर हमारा कंट्रोल नहीं है। पहले तो आप, 'मैं जीव हूँ' ऐसा मानते थे। अब वह मान्यता टूट गई है और 'मैं शिव हूँ' ऐसा पता चल गया। परंतु जीव कभी उसका भाव छोड़ेगा नहीं, उसका हक़-वक़ कुछ भी छोड़ेगा नहीं। परंतु उसे यदि पटाएँ तो वह सबकुछ छोड़ दे ऐसा है। जिस प्रकार कुसंग के प्रभाव से कुसंगी हो जाता है और सत्संग के प्रभाव से सत्संगी हो जाता है, उसी तरह उसे समझाएँ तो वह सबकुछ छोड़ दे ऐसा समझदार है। अब आपको क्या करना है कि आपको चंदूभाई को बैठाकर उनके साथ बातचीत करनी पड़ेगी कि आप सड़सठ साल की उम्र में रोज़ सत्संग में आते हो, उसका बहुत ध्यान रखते हो, वह बहुत अच्छा काम करते हो! परंतु साथ ही साथ यह भी समझाना, और सलाह देना कि, 'देह का इतना ध्यान क्यों रखते हो? देह में ऐसा होता है, वह भले ही हो। आप हमारे साथ यों टेबल पर आ जाओ न! हमारे पास अपार सुख है।' ऐसा आपको चंदूभाई से कहना चाहिए। चंदूभाई को ऐसे दर्पण के सामने बैठाया हो तो वह आपको एक्जेक्ट दिखेंगे या नहीं दिखेंगे?
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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