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________________ ण अनुक्रमणिका [१] अर्थी में साथ में कौन? प्रतिष्ठा का पुतला १ 'ज्ञान' से शंका का शमन बुद्धि का आशय २ उपाय में उपयोग किसलिए? बुद्धि का आशय और भाव ३ निज स्पंदन से पाए परिभ्रमण बुद्धि के आशय का आधार ७ [६] कुदरत और बुद्धि का आशय १० विश्वकोर्ट में से निर्दोष छुटकारा... अंतिम प्रकार का बुद्धि का आशय१० दुःख देने के प्रतिस्पंदन प्रतिष्ठा का कर्ता, परसत्ता में! १० 'अहंकार' भी कुदरती रचना १२ याद-शिकायतों का निवारण आशय के अनुसार भूमिका १३ हार्टिली पछतावा प्रतिष्ठा से पुतला १४ दोषों का शुद्धिकरण आत्मचिंतना किसकी? १५ [७] [२] प्रकृति के साथ तन्मय दशा... वाणी का टैपिंग, 'कोडवर्ड' से १७ 'व्यवस्थित' की संपूर्ण... अहंकार का रक्षण २२ [८] बुद्धि की दख़ल से हुई डखलामण २५ 'असरों' को स्वीकार करनेवाला ५७ [३] बुद्धि और प्रज्ञा का डिमार्केशन ५८ आमंत्रित कर्मबंधी २७ अहंकार के उदय में 'एडजस्टमेन्ट' ५९ तप के ताप से उभर आई शुद्धता २७ 'आत्मप्राप्ति' के लक्षण । प्रतिक्रमण : क्रमिक के - अक्रम के २९ कारण-कार्य की श्रृंखला प्रतिक्रमण, ज्ञानी के ३१ अकर्तापद से अबंध दशा [४] प्रारब्ध बना पुराना, 'व्यवस्थित'... ६४ प्रतिस्पंदन से दुःख परिणाम ३२ [९] [५] कषायों की शुरूआत । व्यवहार में उलझनें ३५ अनुकूलता में कषाय होते हैं? 'क' की करामात ३५ कषायों का आधार 'ज्ञानीपुरुष' की करुणा और समता३६ 'अक्रम' की बलिहारी शंका का समाधान है ही नहीं ३७ अनुभव-लक्ष-प्रतीति 22
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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