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________________ आप्तवाणी-६ २०३ दर्पण के सामने चंदूभाई को बैठाकर कहें कि, 'आपने किताबें छपवाई, ज्ञानदान किया, वह तो बहुत अच्छा काम किया, लेकिन इसके अलावा आप ऐसा करते हो, वैसा करते हो, वह किसलिए करते हो?' ऐसा खुद अपने आप से कहना पड़ेगा या नहीं? सिर्फ दादा ही कहते रहें, उसके बजाय आप भी कहो तो वे बहुत मानेंगे, आपका अधिक मानेंगे! मैं कहूँ तब आपके मन में क्या होगा? मेरे साथवाले पड़ोसी हैं 'वे' मुझे नहीं कहते, और ये दादा मुझे क्यों कह रहे हैं? अतः आपको खुद को ही उलाहना देना है। औरों की सभी भूलें निकालनी आती हैं और खुद की एक भी भूल निकालनी नहीं आती। परंतु आपको तो भूलें नहीं निकालनी हैं, आपको तो चंदूभाई को डाँटना ही है ज़रा। आप तो खुद की सभी भूलें जान गए हो। इसलिए अब 'आपको' चंदूभाई को उलाहना देना है, वे नरम भी हैं, फिर 'मानी' भी उतने ही हैं, हर प्रकार से 'मानवाला' है। इसलिए उन्हें ज़रा पटाएँ तो बहुत काम हो जाए। अब यह डाँटने का अभ्यास हमें कब करना चाहिए? अपने घर पर एक-दो लोग डाँटनेवाले रखें, परंतु वे सचमुच के डाँटनेवाले नहीं होंगे न? सचमुच के डाँटनेवाले होंगे तो काम का है, तभी परिणाम आएगा। नहीं तो झूठा बनावटी डाँटनेवाला होगा तो काम का परिणाम नहीं आएगा। हमें कोई डाँटनेवाला हो तो हमें उसका लाभ लेना चाहिए न? यह तो ऐसा सेट करना नहीं आता है न! प्रश्नकर्ता : डाँटनेवाले होंगे तो हमें अच्छा नहीं लगेगा। दादाश्री : वे पसंद नहीं हैं, परंतु रोज़-रोज़ डाँटनेवाले मिल गए हों, फिर तो हमें निकाल करना आना चाहिए न कि यह रोज़ का हो गया है, तो कैसे ठिकाना पड़ेगा? इसके बजाय तो आप अपनी 'गुफा' में घुस जाओ न? अरीसा में ठपका सामायिक प्रश्नकर्ता : आपने कहा है कि, 'मैं जीव नहीं हूँ, परंतु शिव हूँ।' लेकिन वह अलग नहीं होता।
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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