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________________ २०२ आप्तवाणी-६ पहचाना जा सकता है कि इन भाई की पहलेवाली पच्चड़ कैसी है। अभी का निरीक्षण ऐसा कहता है कि यह सब गलत है, यह झंझट हमारा है ही नहीं। परंतु पहले की पच्चड़ों की मुहर लग चुकी है, उनका क्या होगा? उन्हें तो भोगे बिना चारा नहीं! वे पच्चड़ें कड़वे-मीठे रस चखाकर जाती हैं ! घड़ीभर में मीठा रस देती हैं तो घड़ीभर में कड़वा रस देती हैं ! मीठा रस पसंद है आपको? जब तक मीठा रस पसंद है, तब तक कड़वे के प्रति नापसंदगी रहेगी। मीठा पसंद आना बंद हो जाएगा न, तो कड़वे के प्रति नापसंदगी भी बंद हो जाएगी। यह मीठा कब तक अच्छा लगता है? तब कहे, मोक्ष में ही सुख है, ऐसा पूरा-पूरा अभिप्राय अभी तक मज़बूत नहीं हुआ है। अभी तो अभिप्राय कच्चा रहता है, इसलिए ऐसा बोलते रहना कि, 'सच्चा सुख मोक्ष में ही है, और यह सब झूठा है, ऐसा है, वैसा है।' इस तरह से थोड़ी-थोड़ी देर में 'आपको' 'चंदभाई' को समझाते रहना है। कोई रूम में नहीं हो, आप अकेले हों, तब उपदेश भी दे सकते हो कि, 'चंदूभाई! बैठो, बात को समझ जाओ न!' जब कोई नहीं हो तब आप ऐसा करोगे तो किसी को क्या पता चलेगा कि आप क्या नाटक कर रहे हो? कोई हो तब तो वह आपको क्या कहेगा कि यह घनचक्कर हो गया है कि क्या? 'अरे, घनचक्कर नहीं हुआ। घनचक्कर हो चुका था उसे मैं निकाल रहा हूँ!' तो भी वह तो ऐसा ही कहेगा कि, 'आप चंदूभाई के साथ बात करते हो तो आप कैसे इन्सान हो? आप खुद ही चंदूभाई नहीं हो?' इसलिए जब आप अकेले हों, तभी रूम बंद करके चंदूभाई से कहना, 'बैठो चंदूभाई, हम थोड़ी बातचीत करेंगे। आप ऐसा करते हो, वैसा करते हो, उसमें आपको क्या फायदा? हमारे साथ एकाकार हो जाओ न? हमारे पास तो अपार सुख है!' यह तो उन्हें जुदाई है, इसलिए आपको कहना पड़ता है। जिस तरह इस छोटे बच्चे को समझाना पड़ता है, कहना पड़ता है, वैसे ही 'चंदूभाई' को भी कहना पड़ता है, तभी सीधा चलेगा। अरीसा सामायिक आप कभी अरीसा (दर्पण) में देखकर चंदूभाई को डाँटते हो? हम
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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