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________________ आप्तवाणी-६ १६३ हस्ताक्षर के बिना मृत्यु भी नहीं यात्रा में जानेवाले थे, चार बजे गाड़ी में बैठनेवाले थे, वे सभी लोग चार-चार महीने पहले से जानते थे न? और मरते समय क्यों नहीं कहते कि मुझे जाना है? यह तो ठेठ तक ऐसा नहीं कहता। मन में आशा ही रखता है कि अभी कोई दवाई ऐसी आएगी और मेल बैठ जाएगा ! और रात को फिर अंदर बहुत दुःख पड़े, तब फिर वही खुद कहता है कि इसके बजाय छूट जाऊँ तो अच्छा ! यह मरना है, वह भी हस्ताक्षर किए बिना नहीं आता! ये इन्कमटेक्सवाले हर एक बात में पहले हस्ताक्षर करवाते हैं। उसी तरह मरने में भी पहले हस्ताक्षर होते हैं, उसके बाद ही मरा जाता है ! प्रश्नकर्ता : हस्ताक्षर नहीं करे तो मौत नहीं आएगी न? दादाश्री : हस्ताक्षर नहीं करेगा तो मौत नहीं आएगी। ये सब हस्ताक्षर कर देते होंगे या नहीं? प्रश्नकर्ता : एक्सिडेन्ट से जो मर जाते हैं, वे तो कहाँ से हस्ताक्षर करेंगे? दादाश्री : उसने भी हस्ताक्षर किए हुए होते हैं । हस्ताक्षर किए बिना तो कभी मरा ही नहीं जा सकता । उसके बिना तो मरने का अधिकार ही नहीं है। मृत्यु तो आपकी मालिकी की है, उसमें और किसी की दख़ल नहीं होती। और एक बार आपके हस्ताक्षर हो गए फिर आपका नहीं चलेगा। प्रश्नकर्ता : इस जन्म में हस्ताक्षर किए थे या पिछले जन्म में? दादाश्री : इस जन्म में ही हस्ताक्षर कर दिए होते है। पिछले जन्म में तो उसकी योजना के रूप में होता है, परंतु रूपक में इस जन्म में ही आता है। मैं और मेरे मामा के बेटे रावजीभाई एक दिन बाहर सो रहे थे I अंदर से मेरी बा (माताजी) बोलीं, 'हे भगवान! अब छूट जाऊँ तो अच्छा!' मैंने रावजीभाई से कहा, 'देखो, ये बा ने हस्ताक्षर कर दिए !' क्योंकि भीतर
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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