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________________ आवृत हो जाती हैं। संसार में भी सेफ्टी चाहिए और मोक्ष का मार्ग भी पूरा करना है, फिर घर्षण को स्कोप क्यों दें? जिस ज्ञान के कारण ज्ञानी जगत्जीत बने हैं, वह ज्ञान कभी सुना होगा तो काम आएगा। अंत में जगत्जीत ही बनना है न! जगत् में आप सभी को पसंद आएँगे तभी काम होगा। जगत् को यदि आप पसंद नहीं आए, तो वह किसकी भूल? अपने साथ सामनेवाले को मतभेद हो जाए तो वह अपनी ही भूल है। ज्ञानी तो वहाँ पर बुद्धिकला और ज्ञानकला से मतभेद होने से पहले ही टाल देते हैं। 'मेरा स्वरूप शुद्धात्मा है' ऐसा भान होने के बाद अनुकूल-प्रतिकूल' के द्वंद्व नहीं रहते। जब तक विनाशी स्वरूप में वास था तब तक 'अनुकूलप्रतिकूल' रहता था, जो निरा संसार ही है। 'मीठा' जब तक 'मीठा' लगता है, तभी तक 'कड़वा' 'कड़वा' लगता है। 'मीठे' का वेदन नहीं करें, तो 'कडवे' में वेदन नहीं रहता। 'मीठे' में जानपना रहे तो 'कडवे' में जानपना आसानी से रहेगा, यह तो 'मीठा' भोगने की पुरानी आदतें पड़ी हुई है, इसलिए 'कड़वा' कलेजे को खोखला कर देता है। अनुकूल परिस्थितियों में उत्पन्न होनेवाले कषाय ठंडकवाले होते हैं, मीठे होते हैं। वे राग कषाय-लोभ और कपटवाले कषाय हैं, उनकी गाँठें टूटती नहीं। वे कषाय रस गारवता में डूबो देते हैं और अनंत जन्मों तक भटका देते हैं। जो दान देता है, उसे लोग वाह-वाह का भोजन खिलाए बगैर छोड़ेंगे ही नहीं। वाह-वाह की भूखवाला तो लोगों के फेंके हुए वाह-वाह के टुकड़े धूल में से बीन-बीनकर खा जाता है। जब कि ज्ञानी तो, उन्हें बत्तीस प्रकार का भोजन परोसें तो भी उसे 'स्वीकार' नहीं करते, फिर रोग पैठने का डर ही कहाँ रहा? कोई भी काम करें, तो उसमें काम की क़ीमत नहीं है। परंतु उसमें यदि राग-द्वेष हों तो उससे अगला जन्म खड़ा (सर्जित) हो जाता है। और राग-द्वेष नहीं हों तो अगले जन्म की ज़िम्मेदारी नहीं रहती। 15
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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