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________________ छूटा जा सकेगा? और भूलचूक से यदि दावा दायर हो जाए तो वह वापस ले लेना, प्रतिक्रमण करके ही तो न ! पत्नी के साथ का व्यवहार, उसके भीतर परमात्मा देखकर पूरा करना है, न कि साधु बन जाना है । व्यवहार, व्यवहार में बरतता है, उसमें शुद्ध स्वरूप दिखे, वही शुद्ध उपयोग है। आपसे होनेवाले असंख्य दोष, क्या ज्ञानी की दृष्टि में नहीं आते ? आते तो हैं ही, परंतु उनका उपयोग शुद्धात्मा की तरफ होता है। इसलिए ज्ञानी को राग-द्वेष के परिणाम उत्पन्न ही नहीं होते । अपने खुद के परिणाम बदलते हैं, इसीलिए सामनेवाले के परिणाम बिगड़ते हैं। ज्ञानी के परिणाम किसी भी संयोग में नहीं बदलते। सामनेवाले को सुधारना हो तो सामनेवाला चाहे जितना दुःख दे, फिर भी उसके लिए एक भी उल्टा विचार नहीं आए, तो वह सुधरेगा ही । यही एक, सुधरने का और परिणाम स्वरूप सामनेवाला सुधरे, ऐसा रास्ता है! I सामनेवाले को ‘यह तेरी भूल है', ऐसा मुँह पर कह दें, तब वह एक्सेप्ट नहीं करेगा। बल्कि भूल को ढँकेगा । उसे कहें, 'तू ऐसा करना ।' तब वह कुछ अलग ही करेगा। उसके बदले उसे यदि ऐसा कहा हो कि 'ऐसा करने से तुझे क्या फायदा होगा?' तो वह खुद ही वैसा करना छोड़ देगा। अर्थी में कौन साथ देता है? बहते हुए पानी में कौन से बुलबुले को पकड़कर रखा जा सकता है ? कौन किसका साथ देता है? खुद को भान नहीं कि जिनके लिए संघर्षण होता है, वह वस्तु खुद की है या पराई? यह सब मैं कर रहा हूँ या कोई मुझसे करवा रहा है? देह की क़ीमत पर भी संघर्ष तो होना ही नहीं चाहिए ! भीतर भाव बिगड़ें, अभाव हो या थोड़ी सी आँख भी ऊँची हो जाए, तो वही संघर्ष की शुरूआत है। खुद से दूसरा टकराए परंतु खुद किसी से भी नहीं टकराए, तो वैसे संघर्ष होने के संयोगों में घर्षण होना रुक जाता है और बल्कि कॉमनसेन्स प्रकट हो जाता है, नहीं तो अजागृति से उसी घर्षण में अनंत आत्मशक्तियाँ 14
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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