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________________ इस जगत् में एक क्षणभर के लिए भी अन्याय नहीं हुआ है। जगत् की कोर्टों में अन्याय होता है ! फाँसी पर चढ़ाए, वह भी न्याय है और निर्दोष छोड़ दे, वह भी न्याय है । इसलिए कहीं भी शंका करने जैसा यह जगत् नहीं है। इस जगत् में ऐसा कोई जन्मा ही नहीं कि जो आपका नाम दे सके, और नाम देनेवाला होगा, वहाँ पर लाखों उपाय करने से भी कुछ होगा नहीं। इसलिए दूसरी सब चीज़ों को एक ओर रखकर आत्मा की ओर जाओ। कौन-से ज्ञान के आधार पर किसी पर शंका कर सकते हैं? यह आँखों से देखा हुआ भी क्या गलत सिद्ध नहीं होता। शंका का कभी भी समाधान नहीं हो सकता ! सच्ची बात का समाधान होता है! जहाँ पर शंका नहीं रखता, वहाँ पर शंका होती है । और जहाँ विश्वास रखता है, वहीं पर ही शंका होती है। जहाँ शंका है, वहाँ कुछ भी नहीं होता। कमरे में साँप घुसा, उसे देखा और वह ज्ञान हुआ। जब तक उसके निकल जाने का ज्ञान नहीं होगा, तब तक शंका जाएगी नहीं। नहीं तो फिर ज्ञानीपुरुष के विज्ञान के अवलंबन से वह निःशंक बनेगा। जो कुछ भी याद आता है, उसका मतलब यह कि उसे आपसे शिकायत है। इसलिए वहाँ तो प्रतिक्रमण कर-करके चोखा (खरा, अच्छा, शुद्ध, साफ) करना पड़ेगा । आपने औरों को दुःख दिया, वे यहाँ पर दुःख में तड़पें और आप मोक्ष में जाएँ, ऐसा होगा क्या? जो स्वयं दुःखी है वही दूसरों को दुःख देता है । दु:खी मनुष्य मोक्ष में जाएगा? इसलिए उठो, जागो, और निश्चय करो कि, ‘आज से इस जगत् में किसी भी जीव को किंचित्मात्र भी दुःख नहीं देना है।' फिर मोक्ष आपके सामने आता हुआ दिखेगा। सामनेवाला दुःख दे, वह हमें नहीं देखना है, उसे पूरी छूट है । उसकी स्वतंत्रता आप कैसे छीन सकते हैं? एक तरफ विश्वकोर्ट में से निर्दोष छुटकारा चाहिए और दूसरी तरफ ‘इसने मुझे ऐसा क्यों किया? क्यों कहा?' ऐसे दावे करते रहना है, तो कैसे 13
SR No.030017
Book TitleAptavani Shreni 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2013
Total Pages350
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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