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________________ आप्तवाणी-५ ४५ प्रश्नकर्ता : दादा, सीधे, सरल और सेवाभावी लोगों का विकास खराब लोगों से कम क्यों रह जाता है? दादाश्री : खराब लोगों का विकास होता ही नहीं। परन्तु खराब व्यक्ति की खराबी बढ़ती जाए, तब उसे मार पड़ती है। तब उसका 'इन्वेन्शन' चलता है। उसके बाद खराब व्यक्ति उस सीधे व्यक्ति से भी आगे बढ़ जाता है जबकि वह सीधा व्यक्ति धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहता है। उसका तो दो घंटे में भी बोरसद (बड़ौदा के पास एक गाँव) नहीं आता! उसे कोई अड़चन भी नहीं आती। खो गया, कुछ नहीं मिला, तब 'इन्वेन्शन' होता है। कुदरत का नियम ऐसा है कि जितने मोक्ष में गए, उनमें से अस्सी प्रतिशत नर्क में जाने के बाद ही मोक्ष में जाते हैं ! नर्क में नहीं गया हो तो मोक्ष में नहीं जाने देते! मार पड़नी ही चाहिए। खाना-पीना सबकुछ मिलता रहे, 'आइए पधारिए, पधारिए' ऐसा सभी करे तो 'इन्वेन्शन' रुक जाता है। प्रश्नकर्ता : कई लोगों को ऐसा लगता है कि 'मैं धर्म के रास्ते पर ही जा रहा हूँ। मुझे और कुछ भी जानने की ज़रूरत नहीं है।' वह क्या है? दादाश्री : हर एक अपनी-अपनी भाषा में आगे जा ही रहा है। परन्तु धर्म किसे कहें वह समझना बहुत मुश्किल है। इस जगत् में जो चल रहा है वह धर्म 'रियल' धर्म नहीं है, 'रिलेटिव' धर्म है। वे रिलेटिव धर्म में जा रहे हैं। पूरे दिन धर्म ही करते रहते हैं न? सीधे व्यक्ति को सेवाभाव ही धर्म लगता है। सेवाभाव अर्थात् किसीको सुख देना, किसीकी अड़चन दूर करना, वही धर्म है। परन्तु वह वास्तविक धर्म नहीं माना जाता। जहाँ 'मैं कर रहा हूँ, मैं कर्त्ता हूँ, मैं भोक्ता हूँ', जब तक यह 'मैंपन' है, तब तक सत्धर्म उत्पन्न नहीं होता। ये लौकिक धर्म उत्पन्न होता है। अलौकिक धर्म तो जब मार खाए न तभी भीतर 'इन्वेन्शन' होता है।
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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