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________________ ४४ आप्तवाणी-५ इन दूसरों को प्राप्ति नहीं होगी। अब मेरा क्या कहना है कि हृदयशुद्धिवाले को ज़रूरत की चीजें मिल जाती हैं तो बस, हो गया। फिर उनका 'इन्वेन्शन' बंद हो जाता है। प्रश्नकर्ता : परन्तु दादा, उनकी हृदय की या बुद्धि की जिज्ञासा हो तब होता है? दादाश्री : नहीं, जिज्ञासा हो फिर भी नहीं होता। वे तो सिर्फ दोपाँच लोग आते हैं। उन्हें सुधारते हैं, सेवा सबकी करते हैं और खुद का भी चलता रहता है। प्रश्नकर्ता : अब उन्हें आत्मज्ञान में जाना हो तो क्या होगा? दादाश्री : वे तो धीरे-धीरे कभी ऐसे संयोग मिलेंगे, तब वापिस हृदय में दूसरा कुछ आ जाएगा, तब मार खाएँगे। तब फिर 'इन्वेन्शन' शुरू होगा। यह मेरा 'इन्वेन्शन' किसलिए हुआ है? मार खाने से हुआ है। मैं ऐसी-ऐसी खाइयों में से निकला हूँ, ऐसे-ऐसे 'हिल स्टेशनों' पर चढ़ा हूँ... दूसरा, मुझे जगत् की कोई चीज़ नहीं चाहिए, जगत् में आप भी चढ़े हुए हो, ये सभी चढ़े हुए हैं, परन्तु इन्हें ज्ञाता-दृष्टापन नहीं है, खुद का निरीक्षण नहीं होता। खाने में-पीने में, मस्ती में तन्मयाकार रहते हैं। इसलिए ‘इन्वेन्शन' का सब भूल जाते हैं। हमारा निरीक्षण कितने ही जन्मों का है! अर्थात् इन मन-वचन-काया की सारी शक्ति किसमें जाती है? सारी स्थूल में खर्च करते हैं। जो काम मज़दूर कर सकते हैं उसमें खर्च हो जाती है। अब ऐसी मेरी शक्ति यदि कभी बगीचे में खर्च हो जाए तो मेरी क्या 'वेल्यु' रहेगी? एक घंटे में तो कितना सारा काम हो जाता है? स्थूल में शक्तियाँ खर्च हो जाएँ तो सूक्ष्म में 'इन्वेन्शन' बंद हो जाता है। सेवाभावी हुए इसलिए वहाँ से उस लाइन में उसे 'इन्टरेस्ट' आता जाता है। जहाँ हो वहाँ पर 'आइए पधारिए, पधारिए' ऐसा मिलता रहता है, इसलिए प्रगति बंद हो जाती है। 'इन्वेन्शन' कब होता है? सिर में तीन तमाचे मारें और तब सारी रात जागकर 'इन्वेन्शन' चलता है।
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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