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________________ आप्तवाणी-५ स्वस्थ हो जाओ या अस्वस्थ हो जाओ, आपको तो 'जानने' से काम है। ये सब पौद्गलिक अवस्थाएँ हैं और पौद्गलिक अवस्था को जाने, वह 'शुद्धात्मा' कहलाता है। पौद्गलिक अर्थात् पूरण- गलन हो चुकी ! जो अस्वस्थता आपको आती है वह पूरण (चार्ज होना, भरना) हो चुकी है, तभी आज आ रही है, वह अभी आकर गलन ( डिस्चार्ज होना, खाली होना) हो जाएगी। ४१ 'फ़ॉरेन' में हाथ डाला तो जले बगैर रहेगा ही नहीं। हम 'फ़ॉरेन' में हाथ डालते ही नहीं । क्योंकि यों भी जो फल मिलनेवाला है, वह तो मिलेगा ही। और ऊपर से उसने हाथ डाला उसका 'डबल' फल मिलेगा। दो नुकसान उठाता है। हमें एक ही नुकसान उठाना है । 'चंदूभाई' अस्वस्थ हो जाते हैं, वैसा 'आपको' जानते रहना है, वह पंद्रह मिनिट बाद खत्म हो जाएगा। ‘देखते' रहोगे तो दो नुकसान नहीं होंगे। प्रश्नकर्ता : अस्वस्थता का समय जितना अधिक खिंचेगा, उतना अधिक आवरण कहा जाएगा? दादाश्री : हाँ, जितना आवरण उतना ज्यादा अस्वस्थ रहेगा, परन्तु 'आप' शुद्धात्मा होकर देखते रहोगे तो वह चाहे जितना आवरण हो फिर भी वह तेज़ी से खत्म हो जाएगा । उसका हल आ जाएगा और उसमें खुद हाथ डालने गया तो मारकर झंझट खड़ी होगी । ज्ञानी का अशाता उदय प्रश्नकर्ता : वीतराग पुरुषों को शारीरिक दुःख आते हैं, उदाहरण स्वरूप आपको पैर में ‘फ्रेक्चर' हुआ तो उसमें खुद किस तरह मुक्त रहते हैं? वेदना तो सभी को होती है वैसी ही होती होगी न? दादाश्री : उन्होंने स्वामित्व के जो दस्तावेज हैं, वे फाड़ दिए हैं । ‘यह मन मेरा है' ऐसा दस्तावेज फाड़ चुके हैं। ‘बुद्धि मेरी है, वाणी मेरी है' ऐसा दस्तावेज फाड़ चुके हैं। वाणी को वे क्या कहते है, 'ओरिजिनल टेपरिकॉर्डर ।'
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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