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करे और नहीं हों फिर भी खर्च करे! हर ग्यारहवें वर्ष में पैसा बदलता है। ग्यारह वर्षों तक एक पैसा भी नया नहीं आया हो, तो करोड़पति भी खाली हो जाए! पहले के समय में लोग लक्ष्मी को किस तरह सँभालकर रखते थे? संपत्ति के चार बराबर भाग करके पच्चीस प्रतिशत की प्रोपर्टी खरीद लेते! पच्चीस प्रतिशत का सोना, पच्चीस प्रतिशत ब्याज पर रखते और पच्चीस प्रतिशत व्यापार में डालते थे। इस सिस्टम से दिवालिया होंगे ही नहीं, कभी भी!
बहुत नुकसान हो जाए तब समझ जाना कि पाप का उदय चल रहा है। इसलिए माथापच्ची एक तरफ रखकर शांति से सत्संग कर, आत्मा का कर। ऐसे समय में व्यापार में कुछ भी करने जाएगा, तो वह उल्टा होगा।
जगत् के लोग शरीर को चेतन कहते हैं। जो काम करते हैं, चलते -फिरते हैं उसे चेतन कहते हैं। परन्तु वास्तविक चेतन तो कुछ भी क्रिया करता ही नहीं। मात्र देखना और जानना, ये दो ही क्रियाएँ उसकी हैं। दूसरा सब अनात्म भाग का है। बोलता है, वह भी मिश्रचेतन है। मिकेनिकल चेतन है। रियल चेतन नहीं है। मूल स्वरूप तो स्थिर है, अचल है। बाकी सब चंचल है। मिकेनिकल का अर्थ ही चंचल, सचर है। आत्मा अचर है, जगत् सचराचर है!
चित्त शुद्ध हुआ, वही अंतरात्मा।
पहले शुद्धात्मा प्रतीति में आता है, लक्ष्य में आता है। उसके बाद अनुभव पद में रहने के लिए शुद्धात्मा में ही तन्मयाकार रहना होता है। परन्तु जब तक कर्म खपाने बाकी हैं, तब तक निरंतर शुद्धात्मा में ही तन्मयाकार नहीं रहा जा सकता। इसलिए उसे अंतरात्मदशा, (इन्ट्रिम गवर्नमेन्ट) कहा है। सभी कर्म पूरे हो जाएँ, तब परमात्मा हो जाता है। शुद्धात्मा पद की प्राप्ति के बाद वृत्तियाँ सारी निजभाव में रहती हैं।
चित्त को शुद्धात्मा में रखो या 'दादा भगवान' में रखो, फिर भी वह चित्त को शुद्ध ही रखेगा। संसार में भटकता हुआ चित्त, वह अशुद्ध चित्त कहलाता है, वह मिश्रचेतन है। और शुद्धचित्त हो जाए वह शुद्धात्मा। 'मैं