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________________ आप्तवाणी-५ १८३ प्रश्नकर्ता : अज्ञा नहीं न? दादाश्री : नहीं, अज्ञा तो रहेगी ही नहीं ! अज्ञा हो वहाँ पर संसार खड़ा हो जाएगा। संसारी बाबत की सलाह दें, वह अज्ञाशक्ति है ! जिसे खबर नहीं है कि अपने यहाँ खुद अपनी ही कीर्तनभक्ति करते हैं, उन्हें तो फिर नुकसान ही होगा न? यह जानने के बाद नुकसान मत होने दो! यहाँ जो भक्ति करते हैं, वह मेरे लिए, 'ए. एम. पटेल' के लिए नहीं है, ‘दादा भगवान' की है ! और 'दादा' तो सबमें बैठे हुए हैं, मुझ अकेले में नहीं बैठे हुए हैं, वे आपमें भी बैठे हुए हैं, यह उनकी ही भक्ति है! यह आरती बगैरह सब उनका ही है और इसलिए ही यहाँ पर सभीको आनंद आता है, आपके साथ मैं भी अंदर बैठे हुए 'दादा' को मेरे नमस्कार करता हूँ! प्रश्नकर्ता : उस घड़ी सब आनंद में आ जाते हैं, उसका कारण क्या है? दादाश्री : क्योंकि ये 'दादा' यदि देहधारी रूप में होते न तब तो मन में ऐसा होता कि खुद अपना ही गाना गाते रहते हैं ! वास्तव में यह वैसा नहीं है! कृष्ण भगवान ने गीता में इसी तरह गाया है ! परन्तु लोगों को समझ में नहीं आता न ! " तू' ही कृष्ण भगवान है", जब तक स्वरूप का भान नहीं हुआ हो, तब तक यह किस तरह समझ में आएगा ? सुननेवाला भी खुद का सत्संग करता है और बोलनेवाला भी खुद का सत्संग करता है । यह विज्ञान इस प्रकार का है कि किसी व्यक्ति को दूसरों के लिए करने की ज़रूरत नहीं है, अपने आप खुद अपने लिए ही कर रहे हैं! ये आपको दिखते हैं, वे 'दादा भगवान' हैं? नहीं, नहीं हैं ये 'दादा भगवान', ये तो ‘ए. एम. पटेल' हैं, भादरण गाँव के हैं । 'दादा भगवान' तो अंदर प्रकट हुए हैं, वे हैं! उनका स्वरूप क्या है? ज्ञान - दर्शन - चारित्र और तप वह उनका
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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