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________________ यदि संसार में आगे बढ़ना हो तो बुद्धिमार्ग पकड़ो, और मोक्षमार्ग में जाना हो तो अबुधमार्ग पकड़ो। जो विपरीत बुद्धि होती है, ज्ञानी के सत्संग से वह सम्यक् हो जाती है और वह मोक्ष में ले जाती है! संपूर्ण अबुध हो जाए, तब केवळज्ञान होता है! मोक्ष में जाने के लिए बुद्धि काम की नहीं है। आज्ञा के बिना स्वच्छंद नहीं रुकता और स्वच्छंद गए बिना मोक्ष नहीं होता, इसलिए ज्ञानी की आज्ञा ही धर्म और वही तप! आज्ञा का आराधन ही मोक्ष का उपाय है! योग साधना से एकाग्रता होती है। थोड़ी देर मन स्थिर होता है और वह यदि अबव नॉर्मल हो जाए तो वह महान रोगग्रस्त है। उससे अहंकार बढ़ जाता है और परमात्मा दूर हो जाते हैं। साक्षीभाव, वह अहंकार से रहता है! कोई गालियाँ दे, अपमान करे और बुरा लग जाए, वही प्रमाण है कि अहंकार है अंदर। साक्षीभाव क्रमिकमार्ग की एक सीढ़ी है। अंत में तो ज्ञाताभाव, दृष्टाभाव में आना है। आत्मा के बारे में स्वमति से चलना, उसे ही स्वच्छंद कहा है। स्वच्छंद से मार्ग में अंतराय पड़ते हैं। वर्तन में नहीं लाना है, समझ में सेट कर लेना है, सच्चा ज्ञान! समझने का फल ही वर्तन है। समझ गया हो, परन्तु वर्तन में नहीं आए तब तक दर्शन कहलाता है और वर्तन में आ गया, वह ज्ञान कहलाता है। ज्ञान की माता कौन? समझ! वैसी समझ कहाँ से मिलेगी? ज्ञानी के पास से। पूर्ण समझ वह केवळदर्शन, और वह वर्तन में आ जाए, वह केवळज्ञान है! जहाँ कुछ भी करने का है, वहाँ मोक्षमार्ग नहीं है। जहाँ समझना है, वही मोक्षमार्ग है ! मोक्षमार्ग आसान है, सरल है और सुगम है, बिना किसी मेहनत का मार्ग है। इसलिए काम निकाल लो। 'यह गलत है', ऐसा समझ में आए तब अपने आप वह छूट जाता है। जैसे-जैसे समझदारी दृढ़ होती जाती है, वैसे-वैसे ज्ञान परिणामित होता जाता है। वर्तन में आया, उसे ही चारित्र कहते हैं। सम्यक् चारित्र देखा जा सकता है और केवळ चारित्र, वह इन्द्रियगम्य नहीं है, ज्ञानगम्य है।
SR No.030016
Book TitleAptavani Shreni 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Aradhana Trust
Publication Year2011
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size1 MB
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